वसीयत क्या होती है? वसीयत कैसे लिखी जाती है? | वसीयत कैसे बनायें?

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अपने देश भारत की बात करें तो यहां विवाद की सर्वाधिक तीन वजहें कही जाती हैं-जर, जोरू एवं जमीन। यहां तीसरी वजह जमीन यानी संपत्ति (property) के सर्वाधिक विवाद कचहरियों में दर्ज है। प्रापर्टी के लिए बेटा बाप को बाप नहीं समझता। दो भाई आपस में लड़ने-मरने को तैयार रहते हैं।

बहुत से समझदार लोग अपने बच्चों को प्रापर्टी संबंधी विवाद से दूर रखने के लिए अपनी वसीयत कराते हैं, जिसके जरिए वे उनमें अपनी संपत्ति बराबर हिस्सों में बांट देते हैं। कई बार ऐसा भी करते हैं कि अपने किसी प्रिय बच्चे को अधिक हिस्सा देते हैं एवं दूसरों को कम तो कुछ लोग अपने उत्तराधिकारियों को संपत्ति लायक न पाते हुए वसीयत कर उन्हें संपत्ति से बेदखल भी कर देते हैं।

वसीयत क्या होती है? इसके लाभ क्या हैं? यह कैसे लिखी जाती है? जैसे विषयों पर आज हम आपको विस्तार से बिंदुवार जानकारी देंगे। इसे पूरी तरह समझने के लिए आपको इस पोस्ट को शुरू से अंत तक पढ़ना होगा। आइए, शुरू करते हैं-

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वसीयत क्या होती है? (what is a will)-

वसीयत क्या होती है? वसीयत कैसे लिखी जाती है? | वसीयत कैसे बनायें?

दोेस्तों, सबसे पहले जान लेते हैं कि वसीयत क्या होती है। वसीयत को अंग्रेजी में विल (will) कहकर पुकारा जाता है। ये वस्तुतः एक कानूनी दस्तावेज है, जिसके द्वारा किसी संपत्ति मालिक की मृृत्यु के पश्चात उसके उत्तराधिकारियों के बीच संपत्ति का निर्धारण किया जाता है।

वसीयत किसी व्यक्ति द्वारा अपने जीवनकाल में ही लिखी जाती है एवं किसी भी समय वह इसमें बदलाव कर सकता है, अथवा उसे निरस्त कर सकता है। चाहे वसीयत कानूनी रूप से पंजीकृत ही क्यों न हो। वसीयत की कानूनी परिभाषा भारतीय उत्तराधिकारी अधिनियम-1952 की धारा 2 (h) में दी गई है।

इसके मुताबिक वसीयत किसी व्यक्ति द्वारा अपनी संपत्ति के संबंध में यह इच्छा रखना है कि यह उसकी मृत्यु के पश्चात कार्यान्वित की जाए। इसे इस तरह से समझा जा सकता है कि जब कोई व्यक्ति अपनी इच्छा से अपनी चल अथवा अचल संपत्ति का अधिकार अपनी इच्छानुसार किसी व्यक्ति को सौंपता है तो वह वसीयत करना कहलाता है।

वसीयत कराने के क्या लाभ हैं? (what are the benefits of a will)

मित्रों, वसीयत कराने से संपत्ति के मामले में बहुत सहूलियत रहती है। यह एक व्यक्ति को यह तय करने की सुविधा देती है कि कोई व्यक्ति अपनी मृत्यु के पश्चात अपनी संपत्ति किस प्रकार वितरित करना चाहता है एवं किसके-किसके बीच वितरित करना चाहता है। वसीयत के सामान्य लाभ इस प्रकार से हैं-

  • वसीयतकर्ता का अपनी संपत्ति को विवादों से बचाना।
  • वसीयतकर्ता का अपनी इच्छानुसार संपत्ति का सही विभाजन।
  • वसीयतकर्ता का अपने व्यवसाय की निरंतरता के लिए प्रावधान।
  • नाबालिग बच्चों के लिए ट्रस्ट एवं अभिभावक की नियुक्ति।
  • जो स्वाभाविक उत्तराधिकारी नहीं हैं, उन्हें छोड़ने की सहूलियत।

वसीयत लिखने की क्या शर्त है? (what are the terms to write a will)-

  • दोस्तों, सबसे पहली शर्त तो यह है कि वसीयत करने वाला व्यक्ति बालिग हो। यानी उसकी उम्र न्यूनतम 21 वर्ष हो चुकी हो
  • वसीयत का लिखित में होना आवश्यक है।
  • वसीयत पर वसीयत करने वाले व्यक्ति के साथ ही दो गवाहों के हस्ताक्षर होना भी अनिवार्य है।
  • यदि वसीयत करने वाला व्यक्ति शारीरिक रूप से स्वस्थ न हो तो वसीयतकर्ता की मौजूदगी में उसकी इच्छा से कोई व्यक्ति उसके स्थान पर वसीयत पर हस्ताक्षर कर सकता है।

वसीयत कैसे लिखी जाती है? (how a will is written)-

दोस्तों, सबसे पहले तो यह जान लीजिए कि वसीयत का कोई निर्धारित फाॅर्मेट (format) नहीं है। यह वकील (advocate) की मदद से अथवा उसके बगैर केवल कागज एवं पेन के जरिए भी लिखी जा सकती है।

आप अपनी इच्छानुसार किसी भी प्रारूप में लिखवा सकते हैं। वसीयत लिखे जाने का एक काॅमन तरीका इस प्रकार से है-

  • इसमें वसीयतकर्ता द्वारा सबसे पहले अपना नाम, उम्र एवं निवास स्थान के संबंध में लिखा जाता है।
  • इसके पश्चात उसके द्वारा अपनी समस्त संपत्तियों का ब्योरा लिखा जाता है। इसमें वे संपत्तियां भी शामिल हैं, जो उसने किसी अन्य व्यक्ति के साथ मिलकर खरीदी हैं। इसमें वह अपने हिस्से की भी जानकारी देता है।
  • इसके पश्चात वसीयतकर्ता अपनी संपत्ति में कितने लोगाें को किस रेश्यो (ratio) अथवा अनुपात में संपत्ति (property) देगा, उसका विवरण (details) लिखा जाता है।
  • यदि वसीयतकर्ता अपनी संपत्ति में से किसी को कुछ नहीं दे रहा तो उसका ब्योरा भी यहां लिखा जाएगा।
  • यदि वसीयतकर्ता अपने परिवार को छोड़कर किसी अन्य व्यक्ति को अपनी प्रापर्टी सौंपना चाहता है तो उसे इसका स्पष्ट उल्लेख करना होगा।
  • वसीयतकर्ता की यदि किसी संपत्ति को लेकर कोई शर्त या नियम है तो उसे इसका ब्योरा भी स्पष्ट रूप से देना होगा। यदि कोई शर्त नहीं मानेगा तो उसे हिस्सा मिलेगा अथवा नहीं अथवा कितना हिस्सा मिलेगा, इसका भी स्पष्ट ब्योरा दिया जाता है।
  • इसके पश्चात वसीयतकर्ता अपने एवं प्रमाण के लिए दो गवाहों के साथ तिथि समेत हस्ताक्षर करता है। अंगूठे का निशान लगाता है। यदि गवाह हस्ताक्षर करने में सक्षम नहीं तो अंगूठे के निशान से काम चल सकता है।
  • इस प्रकार एक वैध वसीयत तैयार हो जाती है।

वसीयत का पंजीकरण आवश्यक नहीं, लेकिन करा लेना लाभप्रद (registration of will is not necessary, but it’s beneficial)

दोस्तों, बहुत से लोग वसीयत का पंजीकरण भी करा लेते हैं। पंजीकरण अधिनियम यानी रजिस्ट्रेशन एक्ट (registration act)- 1908 की धारा 18 के अंतर्गत वसीयत को वैकल्पिक रूप से पंजीकृत कराए जा सकने का प्रावधान किया गया है। हालांकि कानूनन ऐसा करने की कोई बाध्यता नहीं है।

लेकिन ऐसा करने से कई फायदे होते हैं। जैसे-भविष्य में वसीयत अथवा संपत्ति के किसी भी विवाद से बचा जा सकता है। दूसरे यदि वसीयत गुम हो जाती है तो पंजीकृत होने की स्थिति में उसकी काॅपी निकलवाई जा सकती है।

वसीयत का रजिस्ट्रेशन कैसे होता है?

वसीयत का रजिस्ट्रेशन कैसे होता है?

साथियों, हमने आपको वसीयत बनाने की प्रक्रिया की जानकारी दी। अब आपको बताते हैं कि वसीयत का रजिस्ट्रेशन कैसे होता है। इसकी प्रक्रिया इस प्रकार से है-

  • वसीयत लिखने के बाद इसे एक सील बंद लिफाफे में रजिस्ट्रार के समक्ष पेश किया जाता है।
  • लिफाफे पर वसीयतकर्ता अथवा एजेंट का नाम लिखा होता है।
  • अब रजिस्ट्रार की ओर से वसीयतकर्ता के सभी विधिक प्रतिनिधियों को समन भेजा जाता है।
  • समन के जरिए विधिक प्रतिनिधियों को आपत्ति दाखिल करने का अवसर दिया जाता है।
  • आपत्ति दाखिल करने का समय समाप्त होने के पश्चात वसीयत रजिस्टर्ड कर दी जाती है।

वसीयत लिखने के दौरान किन बातों का ध्यान रखना आवश्यक है?

दोस्तों, कुछ ऐसे बिंदु हैं, जिनका आपको वसीयत लिखने के दौरान खास ख्याल रखना होगा। ये इस प्रकार से हैं-

  • वसीयत लिखने से पूर्व वसीयतकर्ता को अपनी तमाम प्रापर्टी का एक ब्योरा तैयार कर लेना चाहिए। इसमें उसकी चल-अचल संपत्ति (movable and immovable property) के साथ ही बीमा पालिसी (insurance policy) आदि का भी विवरण हो।
  • वसीयतकर्ता को ऐसे लोगों की सूची तैयार कर लेनी चाहिए, जिन्हें वे अपनी प्रापर्टी के हिस्से सौंपना चाहते हों।
  • वसीयतकर्ता को इसका निर्धारण भी पहले से ही कर लेना चाहिए कि वे अपनी संपत्ति में से कितना हिस्सा, किसको एवं किस अनुपात में देना चाहते हैं।
  • वसीयत सरल एवं स्पष्ट भाषा (easy and clear language) में लिखी जाए, ताकि बाद में शब्दों से कोई भ्रम उत्पन्न न हो और विवाद की स्थिति न पैदा हो।
  • वसीयत के हर पेज पर वसीयतकर्ता को हस्ताक्षर करने होंगे।
  • याद रखें कि वसीयत में जिन दो गवाहों ने हस्ताक्षर किए हों, वे आपके परिचित तो हों, लेकिन उनका वसीयत में कोई हित न हो।
  • यदि वसीयतकर्ता को वसीयत के बाद भी संपत्ति को लेकर किसी प्रकार का विवाद खड़ा होने की आशंका है तो वह अपने किसी भरोसेमंद व्यक्ति को निष्पादक नियुक्त कर सकता है।

वसीयत कौन कर सकता है? (who can do a will)

साथियों, सरल भाषा में कहें तो एक स्वस्थ बुद्धि वाला कोई भी व्यक्ति वसीयत कर सकता है। अंधे एवं बहरे व्यक्ति तक वसीयत बनवा सकते हैं, यदि वे अपने कार्य के नतीजे एवं उसके कानूनी नतीजे समझते हैं।

यदि कोई व्यक्ति पागल है एवं अपने किए का नतीजा नहीं जानता तो वह वसीयत नहीं करवा सकता। आपको बता दें कि इस पर कोई स्टांप ड्यूटी (stamp duty) नहीं लगती, लिहाजा इसे स्टांप पेपर (stamp paper) लिखना आवश्यक नहीं।

वसीयत कितने प्रकार की होती है? (will is of how many types)-

मित्रों, अब आपके दिमाग में यह सवाल जरूर उठेगा कि वसीयत कितने प्रकार की होती है। तो आपको बता दें कि वसीयत के दो प्रकार होते हैं-आम वसीयत एवं विशेषाधिकार प्राप्त वसीयत।

आम वसीयत के बारे में तो हमने बताया कि इसमें क्या क्या आवश्यकताएं होंगी, वसीयत कैसे तैयार होगी आदि। आपको जानकारी दे ही चुके हैं। अब विशेषाधिकार वसीयत के बारे में आपको बताते हैं-

विशेषाधिकार युक्त वसीयत क्या होती है?

दोस्तों, विशेषाधिकार युक्त वसीयत एक अनौपचारिक वसीयत होती है। इसे ऐसे थल सेना, वायु सेना अथवा जल सेना के ऐसे सैनिक बनवा सकते हैं, जो साहसिक यात्रा अथवा युद्ध पर जाते हैं। ऐसे लोग भी यह वसीयत कर सकते हैं, जो अपनी जान को जोखिम में डालने के किसी कार्य में जा रहे हैं।

वे इस वसीयत को एक शार्ट पीरियड नोटिस (short period notice) पर तैयार करा सकते हैं। आपको बता दें कि विशेषाधिकार युक्त वसीयत लिखित (written) एवं मौखिक (oral) हो सकती है।

वसीयत को कैसे सुरक्षित रख सकते हैं? (how a will can be safe)

दोस्तों, यह तो हम आपको ऊपर बता चुके हैं कि वसीयत के पंजीकरण का प्रावधान पंजीकरण अधिनियम-1908 में किया गया है। वसीयत गुम होने पर इसकी काॅपी रजिस्ट्रार आफिस से निकाली जा सकती है।

इसके अतिरिक्त वसीयतकर्ता अथवा उसके एजेंट का नाम लिखा वसीयत का सीलबंद लिफाफा इसे सुरक्षित रखने के लिए किसी भी रजिस्ट्रार के पास जमा कराया जा सकता है।

वसीयत कब विखंडित मानी जाती है?

मित्रों, हमने आपको बताया कि एक वसीयतकर्ता अपनी मर्जी से अपनी वसीयत को कभी भी निरस्त कर सकता है, एवं उसमें बदलाव कर सकता है। लेकिन आपको यह भी बता दें कि कई बार उसकी इच्छा के बगैर कानूनी प्रक्रिया (legal process) द्वारा भी वसीयत का विखंडन हो जाता है।

ऐसा उस स्थिति में होता है, जब वसीयतकर्ता विवाह कर लेता है। लेकिन दोस्तों, एक बात और बता दें कि वसीयतकर्ता अपनी मृत्यु से पूर्व जो वसीयत करता है, वही उसकी अंतिम वसीयत मानी जाती है एवं उसकी संपत्ति का बंटवारा उसी के अनुसार किया जाता है।

वसीयत कब लागू मानी जाती है? (when a will is come in to effect)

दोस्तों, हम आपको ऊपर पोस्ट में बता चुके हैं कि व्यक्ति की मृत्यु से पूर्व की गई वसीयत ही उसकी अंतिम वसीयत (final will) मानी जाती है। ऐसे में वसीयत उसके मृत्यु के पश्चात लागू मानी जाती है।

वसीयतकर्ता की मृत्यु के पश्चात भी वसीयत का पंजीकरण कराया जा सकता है?

मित्रों, आपको बता दें कि पंजीकरण अधिनियम में एक ऐसा भी प्रावधान है, जिसके तहत वसीयतकर्ता की मृत्यु के पश्चात भी वसीयत कराई जा सकती है। अधिनियम की धारा 41 के तहत इसे रजिस्टर्ड कराया जा सकता है।

पंजीकरण अधिनियम की धारा 40 के अंतर्गत यह व्यवस्था की गई है कि वसीयतकर्ता अथवा उसकी मृत्यु के पश्चात वसीयत के अधीन निष्पादक के रूप में अथवा दावा करने वाला कोई भी व्यक्ति उसे पंजीकरण के लिए किसी भी रजिस्ट्रार अथवा उप रजिस्ट्रार के समक्ष पेश कर सकता है।

इस संबंध में यह ध्यान रखना आवश्यक है कि वसीयत वसीयतकर्ता की मृत्यु उपरांत तीन माह के भीतर रजिस्ट्रार के समक्ष पेश कर दी गई हो।

क्या वसीयत को चुनौती दी जा सकती है?

दोस्तों, वैसे तो वसीयत को चुनौती देना बहुत मुश्किल है। इसकी वजह यह है कि कोर्ट वसीयत को वसीयतकर्ता की आवाज के रूप में देखता है, जो अपना पक्ष रखने के लिए उपस्थित नहीं है। लेकिन इसके बावजूद वसीयत पर कोई संदेह होने पर उसे चुनौती दी जा सकती है।

यदि चुनौती देने वाला कोर्ट में सही पाया जाता है तो वसीयत का कुछ हिस्सा अथवा पूरी वसीयत अमान्य करार दी जा सकती है। आज हम आपको बताएंगे कि कोर्ट में वसीयत को किस आधार पर चुनौती दी जा सकती है-

1- वसीयत बगैर इच्छा बनाई गई –

आपको कोर्ट में साबित करना होगा कि वसीयतकर्ता की वसीयत बनाने की इच्छा नहीं थी। मित्रों, आपको बता दें कि यह अर्जी (application) बहुत कम लगाई जाती है, इसकी वजह यह है कि इसे साबित करना मुश्किल है।

2- वसीयतनामा करने की योग्यता का अभाव –

आपको कोर्ट में साबित करना होगा कि वसीयतकर्ता वसीयतनामा बनाने के लिए जो योग्यताएं निर्धारित की गई हैं, उनका सर्वथा अभाव है। जैसे-कानून के अनुसार 18 साल से अधिक उम्र के लोग ही वसीयत बना सकते हैं।

इसे बुढ़ापे अथवा पागलपन के आधार पर चुनौती दी जा सकती है। या फिर वसीयकर्ता के नशे में होने अथवा वसीयत करने की मानसिक क्षमता का अभाव के आधार पर चुनौती दी जा सकती है। कोर्ट में साबित करना होगा कि वसीयत बनाते समय वसीयतकर्ता को इसके परिणाम के विषय में नहीं पता था।

3- वसीयतनामे को लेकर अज्ञानता

आप कोर्ट में यह बात रख सकते हैं कि जिस वक्त वसीयतकर्ता ने वसीयत के दस्तावेजों (documents) पर हस्ताक्षर किए, उस वक्त वसीयतकर्ता को यह नहीं मालूम था कि इसमें क्या लिखा है। यानी वसीयतकर्ता वसीयतनामे में लिखी इबारत के प्रति पूरी तरह अंजान था।

4- वसीयतनामा बनाने में धोखाधड़ी अथवा जालसाजी

आपको कोर्ट में साबित करना होगा कि वसीयतनामा धोखे अथवा जालसाजी (forgery) से तैयार की गई है। लेकिन इसके लिए सुबूत क्योंकि आप ही को जुटाना होगा, यह एक मुश्किल कार्य है। इसके बावजूद फर्जी वसीयतनामे के केस कोर्ट में बहुत आते हैं।

5- वसीयत किसी के प्रभाव में आकर तैयार की गई है

आप कोर्ट में वसीयत को इस आधार पर भी चुनौती दे सकते हैं कि वसीयत किसी के प्रभाव में आकर तैयार की गई है। यानी प्रापर्टी में अधिक हिस्सा पाने के लिए वसीयतकर्ता को प्रभावित किया गया है।

6- परिवार के किसी सदस्य द्वारा दावा

यदि परिवार के किसी सदस्य को वसीयत में उसका हक नहीं मिलता तो वह इसे कोर्ट में चुनौती दे सकता है। दरअसल, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के अनुसार परिवार का मुखिया ही सदस्यों की उचित देखभाल के लिए जिम्मेदार है।

यदि वसीयत में सदस्यों के लिए उचित प्रावधान न किए गए हों अथवा आश्रय कानून के तहत उन्हें हक न मिले हों तो वे फेमिली कोर्ट अथवा हाईकोर्ट में क्लेम कर सकते हैं।

7- वसीयत के सही निष्पादन का अभाव

दोस्तों, आपको हम बता चुके हैं कि वसीयत का सही निष्पादन बेहद आवश्यक है। वसीयत लिखित में होनी चाहिए। उस पर वसीयतकर्ता के साथ ही दो गवाहों के भी हस्ताक्षर होने चाहिए। गवाह ही वसीयत को सत्यापित (verify) भी करते हैं।

यदि इस प्रक्रिया को पूरा करके वसीयत नहीं बनाई गई है तो कोर्ट में इस वसीयत को चुनौती दी जा सकती है।

वसीयत कब तक वैध रहती है?

दोस्तों, यह यह एक बेहद काॅमन सवाल है कि वसीयत की वैधता अवधि (validity period) कितनी है? यह कब तक वैध रहेगी? तो दोस्तों आपको बता दें कि वसीयतकर्ता द्वारा की गई वसीयत उसके निधन पर लागू होकर अनंतकाल तक वैध रहती है। यद्यपि कोई वसीयत को चुनौती देना चाहता है तो वह वसीयत लागू होने के 12 वर्ष के भीतर उसे चुनौती दे सकता है।

ज्यादातर भारतीय वसीयत क्यों नहीं बनाते?

बेशक, वसीयत संपत्ति विवादों को दूर रखने के लिए तैयार किया जाने वाला एक दस्तावेज है, इसके बावजूद यह बात आपको आश्चर्य डाल सकती है दोस्तों कि अधिकांश भारतीय अपनी संपत्ति की वसीयत नहीं करते।

जो वसीयत करते भी हैं, वे आम तौर पर सेवानिवृत्त (retired) एवं वरिष्ठ नागरिक (senior citizen) ही करते हैं। इस मामले में वे भी बेहद सीधे माने जाते हैं। वसीयत न होने का ही नतीजा है कि कोर्ट-कचहरी में आने वाले अधिकांश केस संपत्ति विवाद से ही जुड़े होते हैं।

वसीयत न होने की स्थिति में क्या होता है?

मित्रों, अब आपको बताते हैं कि यदि किसी व्यक्ति के पास खासी संपत्ति होती है एवं व्यक्ति अपने जीवनकाल में वसीयत नहीं कर पाता तो क्या होता है। दोस्तों, इस सवाल का जवाब यह है कि ऐसे में संपत्ति को उसके कानूनी वारिसों के बीच बराबर बांट दिया जाता है।

यहां भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम काम आता है। इस कानून के अंतर्गत पति, पत्नी एवं बच्चों को बराबर हिस्सा मिलता है। जैसे-यदि किसी शादीशुदा व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो ऐसी स्थिति में उसके द्वारा बैंक में छोड़े गए उसके डिपाजिट को व्यक्ति की पत्नी एवं बच्चों में बराबर बांटा जाता है।

लेकिन यदि किसी खाते के लिए किसी व्यक्ति को नामिनी (nominee) बनाया गया है तो बैंक डेथ सर्टिफिकेट (death certificate) मिलने पर सारी संपत्ति पहले नामिनी को ट्रांसफर (transfer) करता है। इसके पश्चात यह उत्तराधिकार अधिनियम के तहत कानूनी वारिसों को प्राप्त होती है।

यदि कोई नामिनी नहीं होता तो ऐसी कंडीशन में वारिस को प्रापर्टी पर क्लेम करने के लिए कोर्ट में उत्तराधिकार प्रमाण पत्र प्राप्त करना होता है। आपको बता दें कि बैंक अमूमन जमा राशि अथवा संपत्ति सौंपने से पहले दावेदारों से डेथ सर्टिफिकेट की original काॅपी एवं एक स्टैंडर्ड फाॅर्मेट वाला एफिडेविट मांगते हैं। एफिडेविट (affidavit) को हिंदी हलफनामा भी कहा जाता है।

आनलाइन वसीयत कैसे बनायें?

दोस्तों, यह इंटरनेट का जमाना है। यही वजह है कि इन दिनों वसीयत बनाने की आनलाइन सुविधा (online facility) भी उपलब्ध है। आपको बता दें कि एसबीआई कैप (SBI cap) समेत कई संस्थाएं आनलाइन वसीयत (online will) बनाने की सुविधा मुहैया करा रही हैं।

एसबीआई कैप की बात करें तो आपको बता दें दोस्तों कि इसमें तमाम बड़ी कंपनियां विशेशज्ञों के जरिए मदद करती हैं। इनमें टैक्स सलाहकार (tax advisor), वकील (lawyer) एवं चार्टर्ड एकाउंटेंट (chartered accountant) आदि शामिल हैं। ये आपकी प्रापर्टी का वैल्यूएशन करके आपको वसीयत तैयार करने में मदद करते हैं।

इस कार्य में करीब तीन हजार रूपये से लेकर छह हजार तक का खर्च आता है। भुगतान डिजिटल (payment digital) ही होता है। इसमें जीएसटी (GST) एवं स्टांप शुल्क भी शामिल है। दोस्तों, इसके अलावा लोग गूगल प्ले स्टोर से एप डाउनलोड (app download) करके भी वसीयत बना सकते हैं।

इन दिनों वसीयत बनाने की सुविधा भी मोबाइल एप (mobile app) पर उपलब्ध है। जैसे-विल स्टार मोबाइल एप। आपको बता दें कि जिन लोगों के पास स्मार्ट फोन है एवं इंटरनेट कनेक्शन है, वे इस सुविधा का लाभ आसानी से उठा सकते हैं।

फर्जी वसीयतनामे के कई केस कोर्ट में आते हैं

दोस्तों, आपको बता दें कि फर्जी वसीयतनामे के भी कई केस कोर्ट पहुंचते हैं। कई मामलों मे एक से अधिक वसीयत वाले केस भी कोर्ट पहुंचे हैं। ऐसे मामलों में कोर्ट वसीयतों की जांच के आदेश देती है। कई राजघरानों तक में इस प्रकार के केस सामने आए हैं।

कई केस तो सालों तक चले हैं। कुछ ऐसे भी हैं, जिन पर अभी तक भी कोई फैसला नहीं आया है। फर्जी वसीयत का एक भिवानी हरियाणा का करोड़ों की कीमत की एक जमीन से जुड़ा मामला बेहद चर्चा में रहा। पीड़ित राजेश महाजन ने पुलिस में शंकर लाल फर्जी वसीयत बनाने का आरोप लगाते हुए रिपोर्ट दर्ज कराई।

महाजन का कहना था कि उनके दादा चिरंजीलाल ने 19 अप्रैल, 1971 को वसीयत कर उसे रजिस्ट्री कराई थी। इसमें उसके पिता बाबू लाल शंकर लाल का समान हिस्सा बताया। आरोप था कि शंकर लाल ने फर्जी वसीयत बनाकर 3 नवंबर, 1998 को तहसील देवली में रजिस्ट्री करा ली।

जबकि उसके दादा ने 22 अप्रैल, 1971 के बाद कोई वसीयत नहीं लिखी। मामले में पीड़ित परिजनों ने अपर जिला जज, टोंक में इस वसीयत को फर्जी बताते हुए चुनौती दी। इस पर कोर्ट ने 9 अप्रैल, 2014 को दिए फैसले में वसीयत को फर्जी करार देते हुए निरस्त कर दिया एवं संपत्ति का बंटवारा 19 अप्रैल, 1971 की वसीयत को ही आधार मानते हुए करने के आदेश दिए।

गायकवाड़ राजघरानों के वारिसों में संपत्ति पर 20 साल बाद सुलह

वसीयत न होने पर कई राजघरानों के वारिसों में संपत्ति विवाद हो चुका है। वडोदरा के गायकवाड़ राजघराने को ही ले लीजिए। दो दशक तक चला संपत्ति विवाद 2013 में सुलझ पाया। छह माह तक लगातार कोशिश करके गायकवाड़ वंशजों ने वडोदरा के एडिशनल सिविल जज की कोर्ट में करारनामे पर हस्ताक्षर इस विवाद का पटाक्षेप किया।

यह विवाद कोई एक दो नहीं, बल्कि 20 हजार करोड़ की संपत्ति को लेकर था। इसके साथ ही सभी पक्षों ने एक-दूसरे पर संपत्ति मामले में दाखिल सभी मुकदमे वापस लेने का भी करारनामा किया।

इस संपत्ति के कुल 27 हिस्सेदार थे। संपत्ति में 700 एकड़ में फैला करीब 130 साल पुराना लक्ष्मी विलास महल, इंदुमती पैलेस, नजरबाग पैलेस, बाकुल बंगला, मोतीबाग की जमीनें, जिन पर इंटरनेशनल मैचों के प्लेग्राउंड एवं गोल्फ कोर्स बने थे, के हलावा सोना, चांदी, हीरे जवाहरात, बेशकीमती पेंटिंग आदि शामिल था।

सिंधिया परिवार का 40 हजार करोड़ का संपत्ति विवाद दो वसीयतों में फंसा है

दोस्तों, आपको बता दें कि सिंधिया परिवार का संपत्ति विवाद काफी पुराना है। करीब 30 साल पुराना। और दांव पर 40 हजार करोड़ की संपत्ति है। यह मामला राजमाता विजयाराजे सिंधिया की दो वसीयतों में फंसा है। राजमाता ने अपनी वसीयत कर अपनी संपत्ति से बेटे माधवराव सिंधिया, पोते ज्योतिरादित्य सिंधिया को बेदखल कर अपनी संपत्ति का एक हिस्सा तीनों बेटियाें उशा राजे, वसुंधरा राजे, यशोधरा राजे के नाम कर दिया।

माधवराव सिंधिया कोर्ट में इसका केस लड़ते रहे। अब ज्योतिरादित्य लड़ रहे हैं, वहीं, उनकी तीन बुआ भी अपने दावे की लड़ाई लड़ रही हैं। आपको बता दें कि राजमाता के पति जीवाजी राव सिंधिया ने मरने से पहले कोई वसीयत नहीं छोड़ी थी। इसके पश्चात विवाद होने पर राजमाता की याचिका पर 1984 में बांबे हाईकोर्ट ने संपत्ति राजमाता एवं माधवराव सिंधिया में आधी-आधी बांट दी थी।

1990 में माधवराव सिंधिया ने ग्वालियर कोर्ट में याचिका दायर कर सिंधिया राजवंश की सभी संपत्तियों का अकेला वारिस होने का दावा किया। राजमाता की तीनों बेटियां 1985 में राजमाता की एक वसीयत का हवाला देते हुए इस दावे को सिरे से नकारती हैं। इसमें राजमाता ने अपने बेटे एवं पोते को अपनी सारी संपत्ति से बेदखल कर दिया था।

उन्होंने दो तिहाई संपत्ति अपनी तीन बेटियों में, जबकि एक तिहाई ट्रस्ट के माध्यम से चैरिटी कर दी थी। 2001 में राजमाता के पक्षकार वकीलों ने एक दूसरी वसीयत अदालत को दिखाई, जिसमें राजमाता ने अपनी सारी संपत्ति तीनों बेटियों के नाम कर दी थी। कोर्ट इन वसीयतों की वैधता जांच रही है। मामला दो वसीयतों के बीच फंसा है।

जयपुर राजपरिवार का संपत्ति विवाद रहा चर्चा में

हाल ही में दिसंबर, 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने जयपुर राजपरिवार के सदस्यों के बीच कीमती संपत्तियों के बंटवारे पर चल रहे विवाद का निपटारा किया। मामला कुछ यूं था-जयपुर के महाराजा सवाई मान सिंह ने तीन शादियां कीं। पहली शादी मारूधर कुंवर से हुई, दूसरी किशोर कुंवर से और तीसरी गायत्री देवी से।

विवाद किशोर कुंवर एवं गायत्री देवी के वारिसों के बीच खड़ा हुआ। मामला महारानी किशोर कुंवर के बेटे जय सिंह, उनके पोते विजित सिंह एवं गायत्री देवी के पोते राजकुमार देवराज एवं राजकुमारी लालित्य कुमारी के बीच में था। राजकुमार देवराज एवं लालित्य के पिता मरहूम जगत सिंह के पास जयमहल पैलेस होटल की 99 फीसदी हिस्सेदारी थी।

वहीं विजित के पिता एवं जय सिंह के भाई स्वर्गीय पृथ्वीराज सिंह के पास एक प्रतिशत की। जगत सिंह ने थाईलैंड की प्रियनंदना से शादी की। बाद में उनमें तलाक हो गया। प्रियनंदना बच्चाें देवराज सिंह एवं लालित्य कुमारी संग बैंकाक में रहने लगीं।

1997 में महाराज जगत सिंह की मौत के पश्चात पृथ्वीराज ने देवराज एवं लालित्य को अपने पिता की संपत्ति से बेदखल कर दिया एवं जयमहल होटल पैलेस की पूरी हिस्सेदारी अपने नाम कर ली। यह मामला दिल्ली हाईकोर्ट के पश्चात नेशनल कंपनी लाॅ अपीलेट ट्रिब्यूनल (national company law applete tribunal) एवं बाद में सुप्रीम कोर्ट (supreme court) भी पहुंचा। उसने मध्यस्थता के जरिए इस विवाद को हल किया।

संपत्ति विवाद में देश का प्रतिष्ठित व्यापारिक घराना बंटा, मां का बेटे पर केस

मित्रों, संपत्ति बहुत बड़े बड़े विवादों की जड़ है। आपको बता दें कि आज से करीब चार वर्ष पूर्व देश के मशहूर व्यापारिक घराने किर्लोस्कर का 10 करोड़ रूपये की जमीन के लिए बंटवारा हो गया। यहां तक कि स्वर्गीय चंद्रकांत किर्लोस्कर की पत्नी सुमन ने अपने ही बेटे 59 वर्षीय संजय पर केस दर्ज करा दिया।

सुमन का आरोप था कि वे जिस बंगले में रहती हैं, संजय उससे जुड़ी जमीन के बड़े टुकड़े पर कब्जा करने की कोशिश कर रहा है। उन्होंने बेटे पर फर्जी अथाॅरिटी लेटर (authority letter) के जरिए प्लाट के टुकड़े करने एवं दीवार खड़ी कर घेराबंदी का आरोप लगाया। वहीं, संजय किर्लोस्कर ने मां के सारे आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि उनके स्वर्गीय पिता ने पूरी संपत्ति सुमन किर्लोस्कर के नाम नहीं की थी।

लकाई कंपाउंड कहने का उनके पिता का आशय सिंह बंगलो से था, पूरी प्रापर्टी से नहीं। यह केस बताता है कि वसीयत स्पष्ट शब्दों में लिखी जानी चाहिए। यदि इस केस में संपत्ति की सीमा रेखा स्पष्ट होती तो विवाद नहीं उठता।

यदि किसी गंभीर बीमारी से ग्रसित हैं तो वसीयत अवश्य करा लें

मित्रों, जीवन- मृत्यु के संबंध में किसी को कुछ नहीं पता। पल भर में भी कुछ हो जाता है और जीने को व्यक्ति सौ साल भी जी लेता है। यूं तो अच्छी संपत्ति रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति को हम उसकी वसीयत करा लेने की सलाह देते हैं।

अधिकांश लोग बड़ी उम्र में जाकर अपनी वसीयत कराते हैं, लेकिन दोस्तों यदि कोई व्यक्ति कम उम्र का है एवं व्यक्ति को कोई गंभीर बीमारी है, तो निश्चित रूप से उसे अपनी वसीयत करा लेनी चाहिए, ताकि वह इस ओर से निश्चिंत हो सके।

वसीयत क्या है?

वसीयत एक कानूनी दस्तावेज होता है, जिसमें संपत्ति का मालिक अपनी मृत्यु के पश्चात संपत्ति किसे एवं किस अनुपात में सौंपना चाहता है, इसका उल्लेख होता है।

वसीयत कौन कर सकता है?

एक सामान्य बुद्धि वाला कोई भी व्यक्ति वसीयत कर सकता है। शर्त यह है कि वह न्यूनतम 21 वर्ष की उम्र पूरी कर चुका हो।

क्या वसीयत सादे कागज पर भी लिखी जा सकती है?

जी हां, वसीयत को सादे कागज पर भी लिखा जा सकता है।

वसीयत से सर्वप्रमुख क्या लाभ है?

वसीयत का सबसे बड़ा लाभ यह है कि वसीयतकर्ता की मृत्यु के पश्चात उसकी संपत्ति को लेकर खड़े होने वाले विवादों से बचा जा सकता है।

क्या वसीयत का पंजीकरण कराना जरूरी है?

जी नहीं, वसीयत का पंजीकरण कराना जरूरी नहीं है, लेकिन इसे पंजीकृत करा लेने के कई लाभ हैं।

विशेषाधिकार युक्त वसीयत कौन करा सकता है?

जल, थल एवं वायु सैनिक, जो किसी साहसिक अभियान अथवा युद्ध में गए हों, लिखित अथवा मौखिक रूप से शार्ट पीरियड नोटिस पर यह वसीयत करा सकते हैं।

वसीयत विखंडित कब मानी जाती है?

वसीयतकर्ता के विवाह कर लेने पर वसीयत विखंडित मानी जाती है।

वसीयत के लिए कितने गवाहों की आवश्यकता होती है?

वसीयत के लिए दो गवाहों की आवश्यकता होती है। यही वसीयतकर्ता के साथ वसीयत पर हस्ताक्षर करते हैं।

वसीयतकर्ता अपने जीवनकाल में कितनी बार वसीयत कर सकता है?

वसीयतकर्ता अपने जीवनकाल में कितनी भी बार वसीयत कर सकता है। उसे बदल सकता है एवं उसे निरस्त भी कर सकता है।

वसीयत को सुरक्षित कैसे रखा जा सकता है?

वसीयत को एक सीलबंद लिफाफे में वसीयतकर्ता अथवा एजेंट का नाम लिखकर रजिस्ट्रार कार्यालय में जमा कराया जा सकता है।

वसीयतकर्ता की अंतिम वसीयत कौन सी मानी जाती है?

वसीयतकर्ता अपनी मृत्यु से पूर्व जो वसीयत करता है, वही उसकी अंतिम वसीयत मानी जाती है।

दोस्तों, इस पोस्ट में हमने आपको वसीयत एवं उसे लिखने के बारे में जानकारी दी। बहुत से लोग अभी भी वसीयत लिखे जाने की प्रक्रिया से अंजान हैं। उम्मीद है यह पोस्ट आपके लिए उपयोगी साबित होगी। इस पोस्ट के संबंध में आपकी तमाम प्रतिक्रियाओं एवं सुझावों का हमेशा की तरह स्वागत है। तो फिर देर किस बात की, नीचे दिए गए कमेंट बाक्स में कमेंट करके अपनी प्रतिक्रिया हम तक पहुंचाइए। ।।धन्यवाद।।

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प्रवेश कुमारी

मास मीडिया क्षेत्र में अपनी 15+ लंबी यात्रा में प्रवेश कुमारी कई प्रकाशनों से जुड़ी हैं। उनके पास जनसंचार और पत्रकारिता में मास्टर डिग्री है। वह गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर से वाणिज्य में मास्टर भी हैं। वह वाणिज्य, व्यापार, कर, वित्त और शैक्षिक मुद्दों और अपडेट पर लिखना पसंद करती हैं। अब तक उनके नाम से 6 हजार से अधिक लेख प्रकाशित हो चुके हैं।

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