पीपीपी मॉडल क्या होता है? | पीपीपी मॉडल के प्रकार, फुल फॉर्म, फायदे व नुकसान | What is PPP model in Hindi

|| पीपीपी मॉडल क्या होता है? | What is PPP model in Hindi | पीपीपी मॉडल के प्रकार | पीपीपी मॉडल की फुल फॉर्म | PPP model full form in Hindi | पीपीपी मॉडल के फायदे | PPP model ke fayde | पीपीपी मॉडल कहां का है? ||

What is PPP model in Hindi :- आपने बहुत जगह पीपीपी मॉडल का नाम सुना होगा और यही आज के समय में विकास की नयी परिभाषा होती है। जब से केंद्र सरकार में मोदी सरकार आई है तब से इस पीपीपी मॉडल के तहत काम में बढ़ोत्तरी देखने को मिली है। आप भी उसके बाद से ही पीपीपी मॉडल को जगह जगह पढ़ते होंगे या उसके तहत किस तरह का निर्माण कार्य किया जाता है, इसके बारे में जानते (PPP model kya hai) होंगे। इसके बारे में समय समय पर न्यूज़ में भी दिखाया जाता है कि भारत सरकार के द्वारा फलाना निजी कंपनी के साथ मिलकर उस चीज़ के निर्माण के लिए समझौता किया गया तो यही पीपीपी मॉडल होता है जिसे आप और हम देखते हैं।

अब आप और हम यह जानते हैं कि केंद्र सरकार हो या राज्य सरकार, उसमे काम करने वाले अधिकारी और कर्मचारी पूर्ण रूप से भ्रष्टाचार में लिप्त पाए जाते हैं या फिर यूँ कहे कि बहुत ही कम ऐसे अधिकारी या कर्मचारी देखने को मिलेंगे जो अपना काम ईमानदारी व मेहनत से करते (PPP model kya hota hai in Hindi) होंगे। यही कारण है कि सरकारी काम या तो देरी से होते हैं या ख़राब गुणवत्ता के होते हैं।

इसी की काट के लिए भारत सरकार के द्वारा पीपीपी मॉडल को लॉन्च किया गया जिसमे सरकारी काम को करवाने के लिए किसी निजी संबंधित कंपनी को ठेका दिया जाता है और वह पीपीपी मॉडल के तहत उसका काम करती (PPP model ke bare mein jankari) है। इसके लिए भारत सरकार या राज्य सरकार उस निजी कंपनी को काम करने के बदले में कुछ पैसे देती हैं या उसका हिस्सा रखती है इत्यादि। तो आज के इस लेख में हम आपके सामने पीपीपी मॉडल के बारे में ही संपूर्ण जानकारी रखने जा रहे हैं।

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पीपीपी मॉडल क्या होता है? (What is PPP model in Hindi)

पीपीपी मॉडल एक ऐसा मॉडल होता है जिसके तहत देश में विकास कार्य को गति देने के लिए भारत सरकार या राज्य सरकार के द्वारा किसी निजी या प्राइवेट कंपनी का सहयोग लिया जाता (PPP model kya hai) है। उदाहरण के लिए भारत सरकार को आधुनिक रेलवे स्टेशन का निर्माण करना है या फिर किसी हाईवे का निर्माण करना है या कोई सरकारी भवन बनवाना है तो उसका प्रोजेक्ट किसी प्राइवेट कंपनी को दे दिया जाएगा।

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इसके तहत सरकार के द्वारा उस प्राइवेट कंपनी को वह प्रोजेक्ट देने के लिए कुछ दिशा निर्देश जारी किये जाते हैं और वह कंपनी एक निश्चित समय अवधि में दिए गए काम को पूरा करके देती है। बदले में उस काम को करने के लिए सरकार उस निजी कंपनी को पैसों का भुगतान करती है या उस प्रोजेक्ट में लाभ का कुछ हिस्सा रखती है या उसे उस चीज़ का कुछ हिस्सा बेच देती है या ऐसी ही कोई डील फाइनल की जाती है।

इसके तहत वह काम भी तेजी से होता है और गुणवत्ता भी अच्छी होती है। वह इसलिए क्योंकि निजी कंपनियों के द्वारा इसमें अच्छे से काम किया जाता है और वहां के अधिकारी या कर्मचारी भ्रष्टाचार में कम लिप्त पाए जाते हैं। साथ ही प्राइवेट कंपनियों के द्वारा अपने कर्मचारियों पर पूर्ण नियंत्रण होता है और उन्हें अपनी नौकरी चले जाने का डर भी सताता रहता है। जबकि सरकारी अधिकारी के साथ ऐसा कुछ नहीं होता है और वे हर कीमत पर अपनी नौकरी पर बने रहते हैं।

पीपीपी मॉडल की फुल फॉर्म (PPP model full form in Hindi)

अब यदि हम पीपीपी मॉडल की फुल फॉर्म की बात करें तो उसे पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (Public Private Partnership) के नाम से जाना जाता है। इसके नाम से ही यह पता चल जाता है कि इसका काम करने का उद्देश्य क्या होगा और क्यों इसे पीपीपी मॉडल का नाम दिया गया है। अब यदि हम पीपीपी मॉडल के हिंदी नाम की बात करें तो उसे सार्वजनिक निजी सांझेदारी के नाम से जाना जाएगा अर्थात किसी काम को करने के लिए सरकार और प्राइवेट कंपनी एक साथ आ गयी हो।

इसमें पब्लिक का अर्थ होता है सार्वजनिक और प्राइवेट का अर्थ होता है निजी जबकि पार्टनरशिप का अर्थ सांझेदारी से (PPP model ka full form in Hindi) हुआ। तो सार्वजनिक का तात्पर्य हुआ सरकार और निजी से तात्पर्य हुआ प्राइवेट कंपनी। तो जिस काम को करने के लिए भारत या राज्य सरकार के द्वारा किसी प्राइवेट कंपनी से समझौता किया जाए तो उसे पीपीपी मॉडल या पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल कहा जाएगा।

पीपीपी मॉडल के प्रकार (PPP model types in Hindi)

पीपीपी मॉडल के बारे में जानने के साथ साथ आपको यह भी जानना चाहिए कि इसके तहत भारत सरकार या राज्य सरकार प्राइवेट कंपनियों को किन अनुबंधों के तहत काम सौंपती है और उसकी क्या कुछ शर्ते होती (PPP model ke prakar) हैं। कहने का अर्थ यह हुआ कि सरकार के द्वारा किसी काम को करवाने के लिए निजी कंपनी के साथ जिस तरह का समझौता किया जाता है उसके तहत ही पीपीपी मॉडल के प्रकार को वर्गीकृत किया जाता है।

तो इन शर्तों और काम करने के आधार पर पीपीपी मॉडल को कुल 7 भागो में विभाजित किया जा सकता है जो कि इस प्रकार है:

बिल्ड ऑपरेट ट्रान्सफर- Build Operate Transfer (BOT)

पीपीपी मॉडल के तहत जिस तरह के समझौते सबसे ज्यादा किये जाते हैं वो इसी के तहत ही किये जाते हैं। आप ज्यादातर पीपीपी मॉडल के प्रकारों को उनके नाम से ही समझ गए होंगे की इनका क्या अर्थ हो सकता है या फिर इसके तहत किस तरह के समझौते भारत सरकार के द्वारा प्राइवेट कंपनी से किये जाते (Build operate transfer in Hindi) हैं। तो बिल्ड ऑपरेट ट्रान्सफर के तहत सरकार के द्वारा इस तरह के समझौते किये जाते हैं जिसके तहत वह कंपनी किसी प्रोजेक्ट को बनाने, फिर अपना लाभ कमाने तक ऑपरेट या संचालित करने और फिर उसे भारत सरकार को सौंप देने का कार्य करती है।

इसे हम एक उदाहरण देकर समझाते हैं। आप एक शहर से दूसरे शहर में अपनी कार या जीप के माध्यम से जाते होंगे। तो आपको बीच में कई हाईवे पार करने के लिए टोल देना पड़ता होगा। तो उसमे से कई निजी टोल होते हैं तो कई सरकारी होते हैं। अब आप सोचेंगे कि हाईवे तो भारत सरकार की संपत्ति होती है तो इसमें निजी टोल कैसे हो सकते हैं। तो उस हाईवे का प्रोजेक्ट इसी समझौते के तहत उस कंपनी को दिया गया होता है और जब यह लाभ पूरा हो जाता है तो उसे पुनः सरकार को सौंप दिया जाता है।

बिल्ड ओन ऑपरेट – Build Own Operate (BOO)

आजकल इस तरह के मॉडल का चलन भी बढ़ रहा है और कई जगह इसका विरोध भी देखने को मिल रहा है। भारत सरकार के द्वारा मुख्य तौर पर रेलवे से जुड़े प्रोजेक्ट में इस तरह के पीपीपी मॉडल को अपनाया जा रहा (Build own operate in Hindi) है। इसके तहत भारत सरकार किसी निजी कंपनी को सरकारी निर्माण से जुड़ा कोई प्रोजेक्ट देती है और उसको बनाने का कार्य सौंपती है।

अब इसे बनाने के बाद उसे संचालित करने का कार्य वही निजी कंपनी करती है और उसे कभी भी इसे वापस भारत सरकार को नहीं सौंपना होता है। एक तरह से वह चीज़ उस निजी कंपनी की ही हो जाती है। आज के समय में आप कई तरह के रेलवे स्टेशन और प्लेटफार्म को इस मॉडल के तहत काम करते हुए देख सकते हैं।

बिल्ड ओन ऑपरेट ट्रान्सफर – Build Own Operate Transfer (BOOT)

यह एक तरह से पीपीपी मॉडल के पहले प्रकार का ही रूप है लेकिन इसमें खर्च किये गए पैसे और लाभ को आधार ना बनाकर समय को आधार बनाया जाता (Build own operate transfer in Hindi) है। कहने का तात्पर्य यह हुआ की इस पीपीपी मॉडल के तहत भारत सरकार एक निश्चित समय अवधि के लिए किसी कम्पनी को वह प्रोजेक्ट का संचालन करने का उत्तरदायित्व सौंपती है।

अब उस कंपनी को उसका निर्माण करना होता है और उसके बाद वह उसकी मालिक भी बन जाती है लेकिन एक निश्चित समय अवधि के लिए। जब वह अवधि समाप्त हो जाती है तो उसका मालिकाना हक़ भारत सरकार या राज्य सरकार को पुनः सौंप दिया जाता है।

लीज डेवलप ऑपरेट – Lease Develop Operate (LDO)

यह एक तरह से ऐसा मॉडल है जिसके तहत बहुत सी प्राइवेट कंपनियां आपस में डील करती है या जिसके तहत कई तरह के बिज़नेस चलाये जाते हैं। जैसे कि आपके यहाँ कोई बैंक खुला है या फिर कोई मॉल खुला है तो यह जरुरी नही कि जिसका वह बैंक है यमल है वह जमीन उन्ही की (Lease develop operate in Hindi) हो। क्या पता उन्होंने इसे बहुत वर्षों के लिए लीज पर लिया हुआ हो जो सामान्य तौर पर 99 वर्षों के लिए होता है।

तो उसी के तहत ही भारत सरकार या विभिन्न राज्यों की सरकारे प्राइवेट कंपनी को अपनी जमीन लीज पर देती है और उस पर कोई भी निर्माण करने की सुविधा देती है। इसके तहत सरकार को उस कंपनी से किराया भी मिलता है, जगह का उपयोग भी होता है और देश के नागरिकों को उस निर्माण कार्य के तहत रोजगार मिलता है तथा अन्य तरह की सुविधाओं का लाभ उठाने को मिलता है। किंतु इसमें सरकार को वह प्रॉपर्टी वापस देने की कोई बाध्यता नहीं होती है।

बिल्ड ओन लीज ट्रान्सफर – Build Own Lease Transfer (BOLT)

यह भी ऊपर वाले पार्ट का ही एक रूप माना जाता है लेकिन इसमें लीज की अवधि समाप्त होने के बाद निश्चित तौर पर उसे सरकार को वापस स्थानांतरित करना होता (Build own lease transfer in Hindi) है। तो इसके तहत सरकार केवल वही संपत्ति के निर्माण की अनुमति प्रदान करती है जो भारत सरकार भी संचालित कर सकती है। जैसे कि बैंक, पोस्ट ऑफिस इत्यादि।

जबकि ऊपर वाले पीपीपी मॉडल के तहत वह कंपनी किसी भी बिल्डिंग का निर्माण कर सकती है जैसे कि मॉल, स्पा, कोचिंग सेंटर इत्यादि। दोनों तरह के पीपीपी मॉडल में केवल यही बेसिक अंतर देखने को मिलता है।

डिजाईन बिल्ड फाइनेंस ऑपरेट/ मेन्टेन – Design Build Finance Operate/ Maintain (DBFO)

इस तरह के पीपीपी मॉडल के तहत सरकार पूर्ण रूप से उस कंपनी को उस जमीन की जिम्मेदारी सौंप देती है। एक तरह से यह सरकारी जमीन को बेचने के समान ही माना जाता है जिसमे कोई सरकार अपनी जमीन को उस निजी कंपनी को सौंप (Design build finance operate in Hindi) देती है। अब यदि भारत सरकार के पास रैल्क्वय की कोई जमीन खाली पड़ी है और वह उसे निजी कंपनी को सौंपने का निर्णय करती है तो वह पीपीपी मॉडल के इसी भाग में आएगा।

इसके तहत वह कंपनी यह निर्धारित करती है कि वहां क्या बनाया जाएगा, उसका डिजाईन क्या होगा, उसे किस तरह से बनाया जाएगा, वहां काम क्या होगा, उस पर कितना पैसा खर्च होगा, उसे किस तरह से संचालित किया जाएगा इत्यादि। तो एक तरह से उस जमीन पर पूरी तरह से मालिकाना हक़ उसी प्राइवेट कंपनी का ही हो जाता है।

डिजाइन बिल्ड फाइनेंस ऑपरेट ट्रांसफर – Design Build Finance Operate Transfer (DBFOT)

पीपीपी मॉडल का यह प्रकार भी ऊपर बताये गए मॉडल के समान ही है लेकिन इसमें बेसिक अंतर यही होता है कि एक समय अवधि के पश्चात उस प्राइवेट कंपनी को वह बिल्डिंग सरकार को पुनः सौंप देनी होती (Design build finance operate transfer in Hindi) है। तो इसके तहत जिस भी बिल्डिंग या भवन का निर्माण कार्य किया जा रहा है वह ऐसा होना चाहिए जहाँ पर भारत सरकार भी दखल रखती हो।

इस तरह से भारत सरकार इस तरह के पीपीपी मॉडल पर अपना नियंत्रण रखती है और एक समय अवधि के पश्चात उसे वापस अपने नाम करवा लेती है। सीधे शब्दों में कहा जाए तो भारत सरकार उस जमीन को उस निजी कंपनी को सौंपती नही है।

पीपीपी मॉडल की क्या जरुरत है? (PPP model ki kya jarurat hai)

आज के समय की मांग है कि भारत सरकार और राज्य सरकारे पीपीपी मॉडल के तहत ही काम करें और देश के विकास में अपना योगदान दें। अब यदि हम सब कुछ सरकारों को ही सौंप देंगे तो आप देख ही रहे होंगे कि उसके तहत किस तरह की गुणवत्ता का काम किया जाता है। उनके द्वारा किसी काम को करने की अवधि 1 वर्ष रखी जाती है और वह वर्षों वर्षों तक अधर में ही लटका रह जाता है। इसका उदाहरण आप किसी भी शहर या राज्य से ले सकते हैं और लगभग हर तरह की सरकार का यही हाल होता है।

ऐसा इसलिए क्योंकि हर तरह की सरकार में काम करने वाले कर्मचारी व अधिकारी तो वैसे ही होते हैं। अब उनके द्वारा उसी तरह काम किया जाता है जैसे वे पहले करते थे। हालाँकि आज के ही कुछ वर्षों में इसमें कुछ सुधार देखने को मिला है और वे तेज गति के साथ काम कर रहे हैं। फिर भी देश को तेज गति से आगे बढ़ाने और विकास कार्यों को करने के लिए पीपीपी मॉडल की बहुत आवश्यकता होती है।

पीपीपी मॉडल के फायदे (PPP model ke fayde)

पीपीपी मॉडल के तहत देश को कई तरह के फायदे देखने को मिले हैं और उसके बारे में आप और हम सभी थोड़ा बहुत जानते भी होंगे। इसका प्रभाव आपको बहुत जगह देखने को भी मिला होगा और मिल भी रहा (PPP model ke labh) है। तो पीपीपी मॉडल के तहत जो जो फायदे देखने को मिलते हैं, उनमे से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं:

  • पीपीपी मॉडल का सबसे पहला फायदा तो यही होता है कि इसके तहत समय की बचत देखने को मिलती है। सरकारी एजेंसी के द्वारा जो कार्य वर्षों वर्षों में किया जाता है वही पीपीपी मॉडल के तहत उससे आधे से भी कम समय में हो जाता है।
  • इसके तहत होने वाला कार्य भी गुणवत्ता के साथ किया जाता है। कहने का अर्थ यह हुआ कि पीपीपी मॉडल के तहत जिन चीज़ों को निर्माण कार्य में लगाया जाता है वह उच्च गुणवत्ता की होती है। तो यह पीपीपी मॉडल का एक बहुत बड़ा फायदा बन कर सामने आया है।
  • पीपीपी मॉडल के तहत सरकारी अधिकारियों का इसके ऊपर दबदबा कम हो जाता है और वे इसमें अडंगा कम डाल सकते हैं। इस तरह पीपीपी मॉडल के तहत जिन चीज़ों का निर्माण कार्य हो रहा है उसे सरकारी अधिकारियों की अनुमति की आवश्यकता कम होती है।
  • अधिकारियों के साथ साथ राजनेताओ का भी इस तरह के मॉडल में कम हस्तक्षेप देखने को मिलता (PPP model benefits in Hindi) है। बहुत बार यह देखने को मिलता है कि भ्रष्ट नेता के द्वारा देश के विकास कार्यों में बार बार अडंगा डाला जाता है और यही विकास में बाधा बनता है।
  • इसमें होने वाला खर्चा भी कम हो जाता है क्योंकि निजी कंपनियां कम निवेश में अच्छा काम करने की काबिलियत रखती है। तो पीपीपी मॉडल कम खर्चे में अच्छा काम करने वाला मॉडल भी माना जाता है।
  • सरकार और निजी कंपनियां जब मिल कर काम करती है तो उनके तहत बेहतर प्लानिंग की जाती है और उसका संचालन भी बेहतर ढंग से किया जाता है। इसके तहत सरकार निजी कंपनियों की कार्यप्रणाली का भरपूर लाभ उठाती है।
  • बहुत बार सरकार के द्वारा निजी कंपनियों को ही तैयार की जाने वाले भवन की डिजाइनिंग का काम सौंप दिया जाता है ताकि वह बेहतर ढंग से किया जा सके। इस तरह से तैयार होने वाली बिल्डिंग भी अच्छी बन पाती है।

इस तरह से पीपीपी मॉडल के तहत अन्य भी कई तरह के फायदे देखने को मिलते हैं जिनमे से कुछ मुख्य फायदे हमने आपको ऊपर बता दिए है।

पीपीपी मॉडल के नुकसान (PPP model ke nuksan in Hindi)

अब जिस पीपीपी मॉडल के कई फायदे देखने को मिलते हैं तो उसके तहत कुछ नुकसान भी निकल कर सामने आये हैं जिनका आपका जानना अति आवश्यक हो जाता है। कहने का अर्थ यह हुआ कि दुनिया में ऐसी कोई चीज़ नहीं है जिसके केवल फायदे ही फायदे देखने को मिले, हर चीज़ अपने साथ कुछ ना कुछ नुकसान भी लेकर आती है। तो पीपीपी मॉडल के तहत होने वाले कुछ नुकसान इस प्रकार है:

  • इसके तहत सरकार और ज्यादा आलसी होती जा रही है। कहने का अर्थ यह हुआ कि देश का काम करवाने के लिए हम जिन नेताओं, अधिकारियों, कर्मचारियों को चुनते हैं और उन्हें देश के खजाने में से इतना वेतन व सरकारी सुख सुविधाएँ दी जाती हैं, आज के समय में वे सभी इतने नकारा हो चुके हैं कि उन्हें देश का विकास करवाने के लिए पीपीपी मॉडल का सहारा लेना पड़ रहा है।
  • अब यदि ऐसा ही है तो फिर इतने अधिकारियों, कर्मचारियों, नेताओं को चुनने की क्या जरुरत या उन्हें वेतन देने की क्या आवश्यकता। जब अन्तंतः काम निजी कंपनियों को ही करना है और उन्हें भुगतान किया जाता है तो फिर क्यों हम सरकारी अधिकारियों के वेतन पर इतना खर्च उठाए।
  • पीपीपी मॉडल के तहत भारत सरकार व राज्य सरकार के द्वारा धीरे धीरे अपनी मालिकाना हक़ वाली चीज़ों पर से नियंत्रण खोता जा रहा है और उस पर आंशिक तौर पर या पूर्ण तौर पर निजी कंपनियों का नियंत्रण होता जा रहा है।
  • यही कारण है कि इस मॉडल के विरोध में कई जगह सरकारी कर्मचारियों का विरोध सामने आ रहा है और वे इसके लिए आंदोलनरत है क्योंकि उनका अधिकार क्षेत्र सिमटता जा रहा है और वे खुले तौर पर निर्णय नहीं ले पा रहे हैं।
  • इसके साथ ही इस मॉडल को इसलिए लागू किया गया था ताकि सरकारे निजी कंपनियों का भरपूर लाभ उठा सके लेकिन हो उल्टा रहा है। निजी कंपनियों की कार्य प्रणाली और उसमे काम करने वाले कर्मचारी इतना ज्यादा कर्मठ है कि उन्होंने सरकार का ही लाभ उठाना शुरू कर दिया है।
  • निजी कंपनियों के द्वारा इस तरह के मॉडल में कई तरह के लूप होल निकाल लिए गए हैं और अब वे अपने स्तर पर भ्रष्टाचार करने लगी है। इस तरह से देश को सरकारी भ्रष्टाचार के साथ साथ निजी कंपनियों का भी भ्रष्टाचार सहना पड़ रहा है अर्थात देश पर दोहरी मार पड़ रही है।
  • सरकार के द्वारा अधिकतर उन्ही प्राइवेट कंपनियों को कांटेक्ट दिया जाता है जिनके द्वारा सरकार को खुश करने का काम किया जाता है या फिर जिनके संबंध सरकार से मजबूत होते हैं। तो पीपीपी मॉडल के तहत योग्यता को ना मानकर रिश्तों को महत्ता दी जा रही है।

इस तरह से पीपीपी मॉडल के अपने कई नुकसान निकल कर सामने आये हैं और यह इस मॉडल को लगातार फेल करने में लगा हुआ है। अब यदि भारत सरकार इसे सही तरीके से लागू कर पाने में सक्षम होती है तो अवश्य ही यह देश के लिए लाभदायक सिद्ध हो सकता है जिसकी संभावना कम ही लगती है.

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पीपीपी मॉडल क्या है – Related FAQs

प्रश्न: पीपीपी मॉडल कहां का है?

उत्तर: पीपीपी मॉडल को भारत देश में कई सरकारी क्षेत्रों में लागू किया गया है।

प्रश्न: पीपीपी मॉडल के कितने टाइप होते हैं?

उत्तर: पीपीपी मॉडल के 7 तरह के प्रकार होते हैं।

प्रश्न: PPP का पूरा नाम क्या है?

उत्तर: PPP का पूरा नाम पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप होता है।

प्रश्न: क्या पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप फायदेमंद है?

उत्तर: कुछ मामलो में पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप फायदेमंद होती है तो कुछ में यह हानिकारक भी सिद्ध हुई है।

इस तरह से आज के इस लेख में आपने पीपीपी मॉडल के बारे में सब आवश्यक जानकारी जुटा ली है। तो अब आपको यह बेहतर ढंग से समझ में आ गया होगा कि पीपीपी मॉडल क्या होता है और यह किस तरह से काम करता है।

शेफाली बंसल
शेफाली बंसल
इनको लिखने में काफी रूचि है। इन्होने महिलाओं की सोशल मीडिया ऐप व वेबसाइट आधारित कंपनी शिरोस में कार्य किया। अभी वह स्वतंत्र रूप में लेखन कार्य कर रहीं हैं। इनके लेख कई दैनिक अख़बार और पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं।
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