चेहरा पुनर्निर्माण फोरेंसिक तकनीक क्या है, कैसे काम करती है? Facial reconstruction forensic technique in hindi

चेहरा पुनर्निर्माण फोरेंसिक तकनीक, Facial reconstruction forensic technique in hindi, फोरेंसिक चेहरे का पुनर्निर्माण

प्लास्टिक सर्जरी (plastic surgery) के बारे में तो आपने खूब पढ़ा होगा। उसमें आपकी स्किन लेकर आपके किसी अंग को तराशा जाता है। कई बार इस तकनीक से चेहरा भी बदल दिया जाता है। लेकिन यदि बात मृत व्यक्ति की करें तो वहां फेशियल रिकंस्ट्रक्शन (facial reconstruction) यानी चेहरा पुनर्निर्माण की फोरेंसिक तकनीक काम आती है।

यह पुलिस के लिए सुबूत जुटाने में अहम साबित होती है। यह तकनीक क्या है? इस तकनीक में चेहरे का निर्माण किस प्रकार कया जाता है? इन दिनों यह तकनीक चर्चा में क्यों है? सबसे पहले इस तकनीक का इस्तेमाल किसने किया था? जैसे विभिन्न सवालों का जवाब आज हम आपको इस पोस्ट के माध्यम से देने की कोशिश करेंगे। आइए, शुरू करते हैं-

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फेशियल रिकंस्ट्रक्शन क्या होता है? (What is facial reconstruction?)

दोस्तों, फेशियल रिकंस्ट्रक्शन (facial reconstruction) को को हिंदी में चेहरा पुनर्निमाण तकनीक भी पुकारा जाता है। जैसा कि नाम से स्पष्ट है, यह चेहरे को फिर से बनाने की प्रक्रिया है। फेशियल रिकंस्ट्रक्शन इसलिए किया जाता है ताकि डेड बॉडी यानी शव की पहचान स्थापित की जा सके। शव की पहचान के पश्चात ही पुलिसिया कार्रवाई आगे बढ़ती है।

चेहरा पुनर्निर्माण फोरेंसिक तकनीक क्या है, कैसे काम करती है? Facial reconstruction forensic technique in hindi

फेशियल रिकंस्ट्रक्शन की फोरेंसिक तकनीक में क्या होता है? (What is involved in forensic technique of facial reconstruction?)

आपको बता दें दोस्तों कि फेशियल रिकंस्ट्रक्शन की फोरेंसिक तकनीक में शव की खोपड़ी (sculp) की जांच की जाती है, जिसके आधार पर उसकी पहचान हो जाती है। और विस्तार से बताएं तो किसी कंकाल से उसकी तस्वीर के जरिए फेशियल बोन (facial bone) यानी चेहरे की हड्डी, टिश्यू (tissue) अर्थात ऊतक एवं आर्टिफिशियल स्किन (artificial skin) यानी कृत्रिम त्वचा का इस्तेमाल करके उसके चेहरे को आकार दिया जाता है।

दोस्तों, यह तो हम आपको बता ही चुके हैं कि इसके लिए इन दिनों 3D तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। इसे मौजूदा दौर की एक बेहद अहम साइंटिफिक आर्ट (scientific art) माना जाता है। इसे 3 dimensions या हिंदी में त्रिआयामी तकनीक भी पुकारा जाता है। इसके लिए एक फोरेंसिक एक्सपर्ट एक्सपर्ट (forensic expert) एवं कंप्यूटर प्रोग्राम (computer program), अज्ञात खोपड़ी/ अवशेषों की स्कैन (scan) की गई तस्वीरों, चेहरे की विशेषताओं की स्टाक तस्वीरों आदि की आवश्यकता पड़ती है।

फेशियल रिकंस्ट्रक्शन के लिए 3D से पहले किस तकनीक का इस्तेमाल किया जाता था? (Which technique was used before this 3D technique for facial reconstruction?)

मित्रों, आपको जानकारी दे दें कि इससे पूर्व यह कार्य 2D (2 dimensions) यानी द्वि आयामी तकनीक से किया जाता था। इस तकनीक में मृत्यु पूर्व की तस्वीरों एवं खोपड़ी की संरचना का इस्तेमाल किया जाता था। इससे शव की पहचान स्थापित की जाती थी। मित्रों, आपको बता दें कि फेशियल रिकंस्ट्रक्शन तकनीक के इस्तेमाल से पुलिस ने कई अहम केस सॉल्व किए हैं। लगे हाथों आपको यह भी बता दें कि हॉलीवुड की कई फिल्मों में कई ऐसे दृश्य फिल्माए गए हैं, जहां फेशियल रिकंस्ट्रक्शन तकनीक (facial reconstruction technique) का इस्तेमाल सामने आया है।

फेशियल रिकंस्ट्रक्शन तकनीक इन दिनों क्यों चर्चा में है? (Why facial reconstruction technique is in news these days?)

अब मुख्य बात पर आते हैं। आपको यह बताते हैं कि इन दिनों यह तकनीक क्यों चर्चा में है। आपने इन दिनों दिल्ली के बेहद चर्चित आफताब-श्रद्धा के केस के बारे में अवश्य पढ़ा-सुना होगा। इसमें आफताब नाम के युवक पर उसकी लिव इन पार्टनर (live in partner) श्रद्धा की गला दबाकर हत्या करने एवं शव के 35 टुकड़े कर ठिकाने लगाने का आरोप है। आपको बता दें कि इस केस में पुलिस अभी श्रद्धा की खोपड़ी की तलाश कर रही है, ताकि उसके हाथ पुख्ता सुबूत लग सके।

यह तो आप जानते ही हैं कि आफताब को बेशक पुलिस ने रिमांड पर लिया हुआ है लेकिन पुख्ता सुबूत के नाम पर उसके हाथ खाली हैं। पुलिस आरोपी की निशानदेही पर खोपड़ी की तलाश कर रही है। यदि खोपड़ी मिल जाती है तो पुलिस के पास कई ऐसी फोरेंसिक तकनीक हैं, जिनके आधार पर वह आफताब के खिलाफ सुबूत हासिल करसकती है। फेशियल रिकंस्ट्रक्शन तकनीक को ऐसी सबसे सटीक फोरेंसिक तकनीक माना जाता है।

इससे पूर्व इस तकनीक को किन मामलों में इस्तेमाल किया जाता है? (In which cases earlier this technique has been used?)

ऐसा नहीं है दोस्तों कि इस तकनीक को पहली बार आफताब एवं श्रद्धा के केस में इस्तेमाल किया जा रहा है। इससे पूर्व भी शव की पहचान स्थापित करने के लिए पुलिस इस तकनीक का प्रयोग कर चुकी है। दोस्तों, आपकी बेचैनी को और न बढ़ाते हुए अब आपको बताते हैं कि इस तकनीक को किन मामलों में इस्तेमाल किया गया है? इससे पूर्व हमारे पूरे देश को सकते में डाल देने वाले निठारी कांड, शीना बोहरा मामले जैसे विभिन्न केसों में यह तकनीक विवादास्पद होते हुए भी इस्तेमाल की गई है एवं बेहद काम की साबित हुई है।

निठारी कांड में कई बच्चों के अवशेष एक घर से बरामद हुए थे। उसे बड़े पैमाने पर बाल तस्करी (child trafficking) से जोड़ा गया था। शीना बोहरा कांड बेहद हाईप्रोफाइल मामला (high profile case) रहा। इससे जुड़े कई सफेदपोशों के नाम जांच में सामने आए थे। विज्ञान की मदद से अपराधियों को बेनकाब करना संभव हो सका है।

सबसे पहले किसने इस तकनीक का आइडिया पेश किया? (Who has been brought the idea of this technique for the first time?)

मित्रों, अब आप यह अवश्य जानना चाहते होंगे कि सबसे पहले इतिहास में इस तकनीक का का आइडिया किसने पेश किया? आपको बता दें कि यह आइडिया सबसे पहले सन् 1883 में हरम वेल्कर के दिमाग में आया। सन् 1895 में विल्हेम हिस ने भी उन्होंने कपाल अवशेषों से चेहरे के पुनर्निर्माण का अनुमान प्रस्तुत किया। उन्होंने चेहरे के ऊतक (tissue of face) की मोटाई पर पहला डाटा (data) भी पेश किया। कहना न होगा कि तब से लेकर आज तक इस तकनीक में कई प्रकार के परिवर्तन आ चुके हैं।

फोरेसिंक की इस तकनीक को मूर्तिकला के माध्यम से किसने विकसित किया? (Who has developed this technique idea through idol art?)

मित्रों, आपको जानकारी दे दें कि सोवियत पुरातत्वविद (Soviet archeologist) एवं मानव विज्ञानी गेरासिमोव (gerasimov) को इस तकनीक को विकसित करने का श्रेय दिया जाता है। उन्होंने पहली बार सन् 1965 में फोरेंसिंक मूर्तिकला की तकनीक को विकसित किया था। इसके पश्चात आपराधिक जांचों में पहचान स्थापित करने के लिए इस तकनीक के इस्तेमाल का रास्ता खुला। यद्यपि बहुत से विशेषज्ञ अभी भी इसकी कानूनी स्वीकार्यता पर सवाल उठाते रहते हैं।

यहां आपको यह भी बता दें कि गेरासिमोव के एक छात्र विल्टन एम क्रोममैन थे, जिन्होंने फोरेंसिंक रिकंस्ट्रक्शन विधि को लोकप्रिय बनाया। उन्होंने सन् 1962 में अपनी पुस्तक में चेहरे के पुनर्निमाण का अपना एक तरीका पेश किया। इनके अलावा सन् 1977 में चेरी एवं एंजल, सन् 1984 में गैटलिफ, सन् 1979 में स्नो एवं सन् 1986 में इस्कैन ने भी इस तकनीक के विस्तार में मदद की।

आपको बता दें दोस्तों कि सन् 2004 में इस क्षेत्र में क्रांतिकारी कदम सामने आया। इसी साल पश्चिमी ओंटोरिया विश्वविद्यालय (western Ontario University) के मानव विज्ञान विभाग (anatomy department) के डॉ एंड्रयू नेल्सन एवं कनाडाई कलाकार (Canadian artist) क्रिश्चियन कार्बेट ने सीटी स्कैन (CT scan) एवं लेजर स्कैन (laser scan) के जरिए करीब 2200 साल पुरानी ममी (mummy) के चेहरे का फोरेंसिक तकनीक से पुनर्निमाण किया।

इस तकनीक के बारे में जानने को उत्सुकता क्यों है? (Why there is curiosity to know about this technique?)

बहुत से लोग इस फेशियल रिकंस्ट्रक्शन तकनीक के बारे में जानने के लिए बहुत उत्सुक हैं। इसकी एक वजह जहां मुंबई का लिव इन क्राइम एवं मर्डर केस है, वहीं, लोग पुलिस की उस कार्यप्रणाली से परिचित होना चाहते हैं, जिनके जरिए वह वैज्ञानिक तकनीकों का इस्तेमाल कर शव की पहचान स्थापित करती है और अपराधियों को उनके अंजाम तक पहुंचाती है। यह तो आप जानते ही हैं कि क्राइम एवं स्पोर्ट्स के प्रति हम भारतीयों में सर्वाधिक दिलचस्पी देखने को मिलती है।

लिहाजा, लोग इस तकनीक के बारे में भी जानने को उत्सुक नजर आते हैं। क्राइम पर रिसर्च (research on crime) करने वाले लोगों के लिए भी इस तकनीक के बारे में जानना काफी महत्वपूर्ण है। विशेष बात यह है कि बहुत से जर्नलों (journals) भी इस तकनीक के अब तक के विकास (development) पर प्रकाशित (publish) हो चुके हैं।

लेकिन आपको बता दें दोस्तों कि पुलिस कुछ बड़े मामलो एवं दबाव वाले मामलों में ही इस प्रकार की तकनीक इस्तेमाल करती है, क्योंकि उसके ऊपर केस खोलने का दबाव (pressure) होता है। लिहाजा, वह सुबूत (proof) हासिल करने के लिए हर तरह से हाथ पांव मारती हैं।

चेहरा पुनर्निमाण तकनीक क्या है?

इस फोरेंसिक तकनीक में चेहरे का पुनर्निर्माण किया जाता है।

फेशियल रिकंस्ट्रक्शन में आजकल कौन सी तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है?

फेशियल रिकंस्ट्रक्शन में इन दिनों 3डी तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है।

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सबसे पहले इस तकनीक का आइडिया किसने पेश किया?

इस तकनीक का आइडिया सबसे पहले सन् 1883 में हरम वेल्कर ने पेश किया।

इस तकनीक का इस्तेमाल क्यों किया जाता है।

इस तकनीक का इस्तेमाल आपराधिक जांच में शव की पहचान स्थापित करने के लिए किया जाता है।

यह तकनीक इन दिनों क्यों चर्चा में है?

यह तकनीक इन दिनों आफताब एवं श्रद्धा के केस की वजह से चर्चा में है। आफताब पर आरोप है कि उसने अपनी लिव इन पार्टनर श्रद्धा की हत्या कर उसके शव के 35 टुकड़ों को जंगल में फेंक दिया।

इससे पहले किन किन मामलों में इस तकनीक का प्रयोग किया गया है?

इससे पूर्व चर्चित निठारी कांड, शीना बोहरा हत्याकांड आदि मामलों में इस तकनीक का प्रयोग किया जा चुका है।

दोस्तों, हमने आपको इस पोस्ट (post) में फेशियल रिकंस्ट्रक्शन फोरेंसिक तकनीक के बारे में अहम जानकारी दी। उम्मीद है कि यह पोस्ट आपके लिए बेहद उपयोगी साबित होगी। यदि आपका इस पोस्ट को लेकर कोई सवाल अथवा सुझाव है तो आप उसे नीचे दिए गए कमेंट बाक्स (comment box) में कमेंट (comment) करके हम तक पहुंचा सकते हैं। धन्यवाद।।

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प्रवेश
प्रवेश
मास मीडिया क्षेत्र में अपनी 15+ लंबी यात्रा में प्रवेश कुमारी कई प्रकाशनों से जुड़ी हैं। उनके पास जनसंचार और पत्रकारिता में मास्टर डिग्री है। वह गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर से वाणिज्य में मास्टर भी हैं। उन्होंने गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय से व्यक्तिगत प्रबंधन और औद्योगिक संबंधों में डिप्लोमा भी किया है। उन्हें यात्रा और ट्रेकिंग में बहुत रुचि है। वह वाणिज्य, व्यापार, कर, वित्त और शैक्षिक मुद्दों और अपडेट पर लिखना पसंद करती हैं। अब तक उनके नाम से 6 हजार से अधिक लेख प्रकाशित हो चुके हैं।
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