Diwali क्या है? दीपावली निबंध हिंदी में | दीपावली का अर्थ और दीपावली क्यों मनाते है?

दीपावली कहिए या Diwali, मिठाइयों, पटाखों और गिफ्ट का सीजन अब बेहद करीब आ पहुँचा है। दीपों का त्योहार Diwali आने वाली 22 अक्टूबर को मनाया जाएगा। उससे पहले धनतेरस से ही खरीदारी का सिलसिला शुरू हो जाएगा। इस Diwali celebration किस तरह से अलग तरीके से हो? सजावट किस तरह से की जाए? जैसे सवालों से जूझना शुरू हो चूका है। लेकिन अगर कोई आपसे पूछे कि Diwali है क्या? अगर आपको नहीं भी पता है तो चिंता की बात नहीं, हम आपको बताएँगे की Diwali क्या है और इसे क्यों मनाया जाता है।

Diwali क्या है? दीपावली निबंध हिंदी में | दीपावली का अर्थ और दीपावली क्यों मनाते है?
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दिवाली क्या है? What is Diwali?

दीपावली यानी दीप + आवली दीपावली शब्द दरअसल संस्कृत के दो शब्दों से मिलकर बना है। ‘दीप’ यानी ‘दिया’ और ‘आवली’ यानी ‘लाइन’। इस तरह इसका मतलब हुआ दीयों की लाइन। इसीलिये इसे रोशनी का त्योहार भी पुकारा जाता है। इस त्योहार का सम्बन्ध कृषि से भी है। फसल कट जाने के बाद हाथ में आये पैसे से पुराने वक़्त में लोग खरीदारी करते थे। घर सजाते थे। घर में हर्ष और उल्लास का वातावरण रहता था। कई दिन त्योहार चलता था।

पुराणों में भी Diwali का जिक्र –

पुराणों की बात करें तो इस त्योहार का उल्लेख पदम पुराण और स्कंद पुराण में भी मिलता है। Diwali को हिंदू कैलेंडर के कार्तिक माह में गर्मी की फसल के बाद के एक त्योहार के रूप में दर्शाया गया है। दिये को स्कंद पुराण में सूर्य, जो कि जीवन के लिए प्रकाश और ऊर्जा प्रदान करता है, के हिस्सों का प्रतिनिधित्व करने वाला माना गया है। कुछ क्षेत्रों में Diwali को यम और नचिकेता की कथा के साथ भी जोड़ा गया है। फारसी यात्री और इतिहासकार अल बरूनी ने भारत पर अपने 11 वीं सदी के संस्मरण में, Diwali को कार्तिक महीने में नये चंद्रमा के दिन हिंदुओं की ओर से मनाया जाने वाला त्योहार कहा है।

भारत के कुछ पश्चिम और उत्तरी भागों में Diwali का त्योहार एक नये हिन्दू वर्ष की शुरुआत का प्रतीक हैं। क्षेत्रीय आधार पर प्रथाओं और रीति-रिवाजों में बहुत जगह बदलाव भी पाया जाता है।

क्यों मनाते हैं Diwali, यह हैं इसे मनाने के पीछे कथाएं –

Diwali को मनाये जाने के पीछे हमारे देश में कई कथाएँ चलन में हैं। इनमें से कोई प्रभु श्रीराम से जुडी है तो कोई भगवान श्रीकृष्ण से। आज हम आपको इस post के माध्यम से इन कथाओं के बारे में बताएंगे।।।

सबसे मशहूर कथा है राजा राम के अयोध्या लौटने की –

लेकिन सबसे मशहूर कथा अयोध्या के राजा राम से जुड़ी है। माना जाता है कि दीपावली के दिन अयोध्या के राजा राम अपने 14 वर्ष के वनवास के पश्चात लंका के अत्याचारी राजा रावण का वध कर अयोध्या लौटे थे। अयोध्यावासियों का दिल अपने प्रिय राजा के आने से प्रफुल्लित था। उन्होंने राजा राम के स्वागत में घी के दीपक जलाए। खुशियाँ मनाईं। घर घर में पकवान बने। उपहार बांटे गए। दियों की रोशनी से कार्तिक महीने की सघन काली अमावस्या की रात भी जगमगा उठी। कहा जाता है कि तब से आज तक हमारे देश में Diwali मनाई जाती है।

धन की देवी लक्ष्मी जी हुईं थीं उत्पन्न –

कई लोग Diwali को देवी लक्ष्मी की उत्पत्ति से भी जोड़कर देखते हैं। पुराणों के अनुसार देव-राक्षसों के बीच युद्ध के पश्चात् समुद्र मंथन में लक्ष्मी और धन्वंतरी उत्पन्न हुए थे। लक्ष्मी जी को धन की देवी भी मन जाता है। यही लक्ष्मी देवी भगवान विष्णु की पत्नी भी बनी। कहते हैं कि Diwali की रात्रि ही लक्ष्मी जी ने अपने पति के रूप में भगवान् विष्णु को चुना और फिर उनसे विवाह किया। इसीलिए Diwali के दिन माँ लक्ष्मी की पूजा की जाती है। धन के साथ ही समृद्धि और ज्ञान भी आये, ऐसी कामना लेकर समृद्धि के प्रतीक भगवान गणेश और विद्या, बुद्धि की देवी सरस्वती माँ की भी आराधना की जाती है।

भगवान श्रीकृष्ण ने किया था नरकासुर का वध –

भगवान श्रीकृष्ण को मानने वाले कहते हैं कि इस दिन श्रीकृष्ण भगवान् ने नरकासुर का वध किया था। जनता उससे बहुत त्रस्त थी। उसके मारे जाने की ख़ुशी में लोगों ने घी के दिए जलाये। तब से Diwali मनाई जाने लगी।

भगवान विष्णु ने किया हिरण्यकश्यप का वध –

एक और पौराणिक कथा Diwali को हिरण्यकश्यप के वध से भी जोडती है। इसके मुताबिक भक्त प्रहलाद के पिता हिरण्यकश्यप को स्वयं पर बड़ा अभिमान था। वह प्रहलाद के सदैव भगवान् भक्ति में लीं रहने से खफा रहते थे, उनकी प्रजा भी उनसे त्रस्त थी। उन्हें वरदान प्राप्त था कि उन्हें कोई नर या नारी नहीं मार सकती। कहते हैं कि भगवान् विष्णु ने नरसिंह का रूप धारण कर हिरण्यकश्यप का वध किया था। प्रजा ने दीप जलाकर इसकी ख़ुशी मनाई थी।

Diwali का विभिन्न धर्मों से जुड़ाव –

Diwali का विभिन्न धर्मों से किसी न किसी रूप में जुड़ाव है। जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर महावीर स्वामी को इसी दिन मोक्ष प्राप्त हुआ था। लिहाजा, जैन धर्म को मानने वाले इस दिन को महावीर स्वामी के निर्वाण दिवस के रूप में भी मनाते हैं। सिख धर्म में भी Diwali का विशेष महत्व है। इसी दिन अमृतसर में 1577 में गोल्डन टेम्पल का शिलान्यास हुआ था। इसके अलावा 1619 में दीवाली के दिन सिक्खों के छठे गुरु हरगोविंद सिंह को मुगलों की जेल से रिहा किया गया था, लिहाजा वह इस दिन को ‘बंदी छोड़ दिवस’ के रूप में भी मानते हैं।

अँधेरे से उजाले की ओर ले जाने वाला पर्व –

यह पर्व ‘असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय’। यानी बुराई से अच्छाई की ओर, और अंधकार से प्रकाश की ओर जाने की राह दिखाता है। इसे स्वच्छता और प्रकाश का पर्व भी कहा जाता है। लोग अपने घरों, दुकानों आदि की सफाई करते हैं। घरों में मरम्मत, रंग-रोगन, सफ़ेदी का कार्य होने लगता है। घरों और बाजारों में लाइटिंग की जाती है। सब कुछ सजा धजा नजर आता है।

पांच दिन चलता है रोशनी और ख़ुशी का त्योहार –

Diwali की तैयारी दशहरे के साथ ही शुरू हो जाती है। और Diwali का यह पर्व पांच दिन चलता है। Diwali से ठीक दो दिन पहले धनतेरस मनाई जाती है। इस दिन बर्तन खरीदना शुभ मना जाता है। अगर बर्तन नहीं तो भी लोग कुछ न कुछ खरीदारी जरूर करते हैं। इस दिन घर के दरवाजे पर एक दीपक जलाया जाता है। इससे अगले ही दिन नरक चर्तुदशी या छोटी दीपावली होती है। इस दिन यम पूजा के लिए दीपक जलाए जाते हें। इसके बाद फिर Diwali होती है। घरों में सुबह से ही तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं। बाज़ारों में खील-बताशे, मिठाइयाँ, खांड़ के खिलौने, लक्ष्मी-गणेश आदि की मूर्तियाँ बिकने लगती हैं। स्थान-स्थान पर आतिशबाजी और पटाखों की दूकानें सजी होती हैं।

दीपावली कैसे मनातें हैं? How to celebrate Deepawali?

सुबह से ही लोग रिश्तेदारों, मित्रों, सगे-संबंधियों के घर मिठाइयाँ और उपहार बाँटने लगते हैं। कॉर्पोरेट जगत में भी उपहारों का खूब लेन -देन होता है। दीपावली की शाम लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा की जाती है। पूजा के बाद लोग अपने-अपने घरों के बाहर दीपक व मोमबत्तियाँ जलाकर रखते हैं। रंग-बिरंगे बिजली के बल्बों की झालर से घर, बाज़ार और गलियाँ जगमगा उठती हैं। तरह-तरह के पटाखे और आतिशबाजी छोडी जाती है। मिठाइयों में मिलावट की आशंका को देखते हुए भी सूखे मेवे उपहार में देने का ट्रेंड बढा है। घर के फर्श, दरवाजों और रास्तों पर रंगोली और रचनात्मक पैटर्न का खूबसूरत डिज़ाइन उकेरा जाता है।
इससे अगला दिन गोवर्धन पूजा का होता है। कहते हैं कि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी अँगुली पर उठाकर बृजवासियों को इंद्र के कोप से बचाया था।

इस दिन लोग गायों को सजाते हैं तथा गोबर का पर्वत बनाकर पूजा करते हैं। इसके अगले दिन भैया दूज का त्योहार होता है। इस दिन बहन अपने भाई का तिलक कर उसके मंगल की कामना करती है। बदले में भाई उसे उपहार देता है। दीपावली के दूसरे दिन व्यापारी भी अपने पुराने बहीखाते बदल देते हैं। वह दुकानों में लक्ष्मी पूजन करते हैं। उनका मानना है कि ऐसा करने से धन की देवी लक्ष्मी की उन पर विशेष कृपा रहेगी।

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इन जगहों पर होती है काली की पूजा –

ओडिशा और पश्चिमी बंगाल में लक्ष्मी की जगह काली की पूजा करते हैं, और इस त्योहार को काली पूजा कहते हैं। वहीँ उत्तर प्रदेश के मथुरा और आस पास के क्षेत्र में इसे भगवान कृष्ण से जुड़ा मानते हैं। गोवर्धन या अन्नकूट की दावत में कृष्ण के लिए 56 या 108 विभिन्न व्यंजनों का भोग लगाया जाता है। यह आयोजन सामूहिक रूप से किया जाता है। वहां प्रत्येक कार्य भगवान श्रीकृष्ण को हाजिर-नाजिर जानकर किया जाता है।

विदेशों में भी धूम से मनाते हैं  Diwali –

केवल भारत में ही नहीं विदेशों में भी Diwali धूमधाम से मनाई जाती है। चाहे पडोसी देश नेपाल हो या फिर सात समंदर पार के देश। हर जगह रौशनी के इस त्यौहार की धूम रहती है। नेपाल में Diwali को ‘तिहार’ के नाम से जाना जाता है। लोग इस दिन अपने घरों को सजाते हैं, एक दूसरे को गिफ्ट देते हैं और देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं। मॉरिशस में 50 फीसदी से अधिक आबादी भारतीयों की है, ऐसे में वहां बड़े पैमाने पर Diwali मनाई जाती हैं। लोग अवकाश में इस त्यौहार का आनंद उठाते हैं। फिजी में भी यही स्थिति है। यहाँ स्कूल-कॉलेज बंद रहते हैं और लोग एक दूसरे को गिफ्ट देकर हैप्पी Diwali कहते हैं।

इंडोनेशिया Diwali का महत्व –

इंडोनेशिया में भले बड़े पैमाने पर भारतीय न रहते हों, लेकिन यहाँ भी Diwali को परम्परागत तरीके से मनाया जाता है। इससे पूर्व रामलीला भी कराई जाती है। अब मलेशिया पर आते हैं। यहाँ पर Diwali को हरि Diwali पुकारा जाता है। यहाँ त्यौहार मनाने की परम्परा भारत से थोड़ी भिन्न है। लोग शरीर पर तेल लगाकर स्नान करते है। इसके बाद मंदिरों में पूजा करते हैं। मलेशिया में पटाखों पर बैन है इसलिए वह मिठाइयों और उपहारों का आदान प्रदान कर एक दूसरे को शुभकामना देते हैं।

श्रीलंका Diwali का महत्व –

श्रीलंका में भी बड़े पैमाने पर हिंदू आबादी है। लिहाजा, Diwali यहाँ भी बड़े उत्साह से मनाई जाती है। यहाँ का रिश्ता भी रामायण के पात्रों से जुड़ता है। ऐसे में Diwali का रंग अपने देश जैसा ही होता है। कनाडा में भी Diwali का खूब रंग जमता है। इसे ‘मिनी पंजाब’ भी कहा जाता है। इसलिए Diwali का उत्साह देखते ही बनता है। सिंगापुर में भी Diwali की धूम रहती है। रंगोली के साथ ही अलग अलग तरीके से सजावट की जाती है।

सबसे बड़ा शॉपिंग सीजन है Diwali –

दीपावली नेपाल और भारत में सबसे बड़े शॉपिंग सीजन में से एक है; इस दौरान लोग कारें और सोने के गहनों के रूप में भी महंगे आइटम तथा स्वयं और अपने परिवारों के लिए कपड़े, उपहार, उपकरण, रसोई के बर्तन समेत तमाम उपहार खरीदते हैं। उपहार के रूप में आम तौर पर मिठाइयाँ और सूखे मेवे देने का चलन है। कृषि से जुड़े लोग भी फसल काटने के बाद भुगतान होने से बड़े पैमाने पर खरीदारी करते हैं।

Online Platform पर Diwali के लिए बड़े Offers –

online platform से खरीद पर ढेरों offer online platform पर विभिन्न आइटमों की खरीद पर बड़े offer दिए जाते हैं। अभी नवरात्र की sale चल रही है। लेकिन कई लोगों को Diwali पर इससे भी बड़ी sale की उम्मीद है। auto, mobile phones और electronics के बाज़ार में और अच्छे offers का लोगों को इन्तजार है। इसके अलावा कपड़ों, जूतों, घरेलू उपकरणों सभी की खरीद पर Diwali पर बेहतर offer का लोगों को हमेशा की तरह wait रहता है।। इसके लिए अभी से flipkart, snapdeal, amazon, mintra, जैसे online platforms को लोग खंगालने में लगे हैं। आपको बता देते हैं कि इन platform का use करने में युवा आगे हैं।

प्रवेश
प्रवेश
मास मीडिया क्षेत्र में अपनी 15+ लंबी यात्रा में प्रवेश कुमारी कई प्रकाशनों से जुड़ी हैं। उनके पास जनसंचार और पत्रकारिता में मास्टर डिग्री है। वह गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर से वाणिज्य में मास्टर भी हैं। उन्होंने गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय से व्यक्तिगत प्रबंधन और औद्योगिक संबंधों में डिप्लोमा भी किया है। उन्हें यात्रा और ट्रेकिंग में बहुत रुचि है। वह वाणिज्य, व्यापार, कर, वित्त और शैक्षिक मुद्दों और अपडेट पर लिखना पसंद करती हैं। अब तक उनके नाम से 6 हजार से अधिक लेख प्रकाशित हो चुके हैं।
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