बाल विवाह निषेध (संशोधन) विधेयक-2021 | Child Marriage Prohibition Bill Amendment

हमारे देश के राजस्थान जैसे कई राज्यों में बाल विवाह की कुप्रथा अभी पूरी तरह समाप्त नहीं हुई है। सरकार पूर्व में इस पर रोक लगाने के लिए बाल विवाह निषेध अधिनियम भी ला चुकी है, जिसका मकसद बाल विवाह पर प्रतिबंध लगाना था।

अब एक बार फिर केंद्र सरकार द्वारा संसद के निचले सदन यानी लोकसभा में बाल विवाह निषेध (संशोधन) विधेयक-2021 लाया गया है, जिसे प्रतिपक्ष के विरोध के बावजूद पारित होने पर संसदीय स्थाई समिति को संदर्भित किया गया है। इसकी आवश्यकता एवं विभिन्न बिंदुओं पर आज हम इस पोस्ट के माध्यम से प्रकाश डालेंगे। आशा है कि यह पोस्ट आपको पसंद आएगी-

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बाल विवाह निषेध (संशोधन) विधेयक-2021 में क्या क्या प्रस्तावित संशोधन हैं?

बाल विवाह निषेध (संशोधन) विधेयक का मकसद धारा 2 (ए) में बच्चे की परिभाषा को एक ऐसी पुरूष अथवा महिला जिसने 21 वर्ष की उम्र पूरी नहीं की हो, का अर्थ प्रदान करने के लिए संशोधन करना है। इस संशोधन के जरिए लड़कियों के विवाह की न्यूनतम उम्र 21 वर्ष किया जाना प्रस्तावित है। इस विधेयक के खास बिंदु इस प्रकार से हैं-

बाल विवाह निषेध (संशोधन) विधेयक-2021 | Child Marriage Prohibition Bill Amendment
  • यह विधेयक 21 दिसंबर, 2021 को लोकसभा में पेश किया गया है। यह विधेयक महिलाओं की शादी की न्यूनतम उम्र को बढ़ाने के लिए बाल विवाह निषेध अधिनियम-2006 में संशोधन का प्रस्ताव करता है।
  • यह विधेयक पुरूष एवं महिला दोनों के लिए शादी की न्यूनतम उम्र समान बनाता है। अभी दोनों की विवाह योग्य न्यूनतम आयु में तीन वर्ष का अंतर है।
  • इस विधेयक के जरिए स्वास्थ्य एवं अन्य सामाजिक सूचकांकों जैसे-शिशु मृत्यु दर, मातृ मृत्यु दर, माताओं एवं बच्चों के पोषण स्तर में सुधार की बात की जा रही है।
  • यह विधेयक बाल विवाह को शून्य घोषित किए जाने के लिए याचिका दायर करने को दायरा बढ़ाता है। उन्हें 18 वर्ष की उम्र के पश्चात पांच साल तक बाल विवाह को शून्य किए जाने की अनुमति देने के लिए याचिका दायर करने की इजाजत देता है। वर्तमान में बाल विवाह निषेध अधिनियम की धारा 3 (4) एक महिला को उसके 20 साल की उम्र पूरी करने से पहले एवं पुरूष को उसके 23 वर्ष की आयु पूरी करने से पहले उनकी शादी को शून्य घोषित किए जाने की इजाजत देता है।
  • यह विधेयक कई कानूनों में संशोधन का प्रस्ताव देता है, ताकि इन कानूनों में महिलाओं की न्यूनतम उम्र को बढ़ाकर 21 साल किया जा सके। जैसे-
  • भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम-1972
  • पारसी विवाह एवं तलाक अधिनियम-1936
  • विशेष विवाह अधिनियम-1954
  • हिंदू विवाह अधिनियम-1955
  • विदेश विवाह अधिनियम-1969
  • यह विधेयक यह प्रावधान करता है कि यदि किसी कानून, प्रथा अथवा रूढ़ि, जो विवाह से संबंधित पक्षों को नियंत्रित करती है, का अधिनियम से अंतरविरोध होता है तो ऐसी स्थिति में अधिनियम ही लागू होगा।

पहला बाल विवाह निरोधक अधिनियम कब आया, इसमें क्या क्या संशोधन हुए

बाल विवाह निषेध अथवा निरोधक अधिनियम पहली बार कब आया? एवं समय के साथ साथ इसमें क्या क्या परिवर्तन हुए?, अब हम आपको इस संबंध में जानकारी देंगे। भारत में सामाजिक सुधार आंदोलन के परिणाम स्वरूप 28 सितंबर, 1929 को इंपीरियल लेजिस्टलेटिव कौंसिल आफ इंडिया में बाल विवाह निरोधक अधिनियम-1929 पारित हुआ।

इसके माध्यम से लड़कियों के विवाह की न्यूनतम उम्र 14 साल एवं लड़कों की शादी की न्यूनतम उम्र 18 साल तय की गई। इसे हरविलास शारदा की पहल पर लाया गया था, इसलिए इसे ‘शारदा अधिनियम’ के नाम से भी जाना जाता है। यह अधिनियम भारत भर में एक अप्रैल, 1930 से प्रभावी हुआ। यह केवल हिंदुओं पर ही नहीं, बल्कि ब्रिटिश भारत के सभी लोगों पर लागू था।

सन् 1978 में बाल विवाह निरोधक अधिनियम में संशोधन किया गया। इसके अनुसार शादी के लिए लड़कियों की न्यूनतम उम्र 14 साल से बढ़ाकर 18 वर्ष निर्धारित की गई।

वहीं, लड़कों की विवाह की न्यूनतम उम्र 18 से बढ़ाकर 21 साल कर दी गई। भारत सरकार वक्त की नब्ज को पहचानते हुए सन् 2006 में बाल विवाह निरोधक अधिनियम के स्थान पर बाल विवाह निषेध अधिनियम-2006 लाई।

इसमें बाल विवाह पर रोक लगाने के साथ ही पीड़ितों को राहत देने एवं इस प्रकार के विवाह को बढ़ावा देने वालों के लिए सजा बढ़ाने जैसे प्रावधान शामिल किए गए। इसमें बाल विवाह निषेध अधिकारी की नियुक्ति का भी प्रावधान किया गया।

यह अधिनियम जम्मू-कश्मीर एवं पांडिचेरी को छोड़कर पूरे भारतवर्ष में लागू हुआ। इसमें बालक एवं बालिका की परिभाषा यह दी गई, ‘जिन्होंने क्रमशः 21 एवं 18 वर्ष की आयु पूर्ण न की हो’।

इसमें 21 वर्ष से अधिक पुरूष के किसी बालिका से विवाह करने पर उसे दो वर्ष के लिए कठोर कारावास अथवा एक लाख रूपये जुर्माना अथवा दोनों प्रकार के साथ साथ दंड का प्रावधान किया गया।

इसमें यह भी प्रावधान किया गया कि यदि कोई व्यक्ति बाल विवाह में सहायता करता है, ऐसा करने के लिए निर्देशित करता है अथवा उसका पालन करता है तो उसे दो वर्ष के कठोर कारावास के अथवा एक लाख रूपये जुर्माना या दोनों सजा साथ हो सकती हैं।

अधिनियम में प्रावधान किया गया है कि यदि बच्चे के माता-पिता अथवा अभिभावक अथवा किसी अन्य संगठन के सदस्य सहित कोई व्यक्ति बाल विवाह को बढ़ावा देने अथवा इजाजत देने के लिए कोई कार्य करता है अथवा इसे रोकने में लापरवाही दिखाता है तो इस प्रकार के विवाह में शामिल होने अथवा भाग लेने पर उसे दो साल तक का कठोर कारावास अथवा एक लाख रूपये का जुर्माना अथवा दोनोें दंड साथ साथ मिल सकते हैं। इस अधिनियम के अंतर्गत अपराध संज्ञेय एवं गैर जमानती की श्रेणी में रखे गए।

बाल विवाह निषेध (संशोधन) विधेयक-2021 को लाने के पीछे उद्देश्य

अब आपको अवगत कराते हैं कि बाल विवाह निषेध (संशोधन) विधेयक को पेश करने के पीछे क्या उद्देश्य हैं। इनका विवरण निम्नवत है-

  • लड़कियों को विवाह की उम्र के मोर्चे पर भी समानता प्रदान करना। यह तो आप जानते ही हैं कि हमारे देश में बालिकाओं के साथ लैंगिक भेदभाव बहुत अधिक है। सरकार कम से कम विवाह की न्यूनतम उम्र के मामले में इस भेदभाव को कम कर देना चाहती है।
  • लड़कियों को शिक्षा के पश्चात भविष्य बनाने का अवसर प्रदान करना। बहुधा देखा जाता है कि मां-बाप बच्चियों की शिक्षा के दौरान ही उनके लिए वर देखना शुरू कर देते हैं, ताकि उनका विवाह 18 की उम्र पूरी करते ही किया जा सके। ऐसे में लड़कियों को अपने करियर के विषय में सोचने तक का अवसर नहीं मिल पाता।
  • मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में कमी लाना। 18 वर्ष की उम्र में लड़कियां मातृत्व की जिम्मेदारी उठाने के लिए मानसिक रूप से पूरी तरह तैयार नहीं होती। ऐसे में यह जिम्मेदारी उठाने के लिए मानसिक रूप से तैयार होने को उन्हें अधिक समय की आवश्यकता है।

बाल विवाह निषेध (संशोधन) विधेयक-2021 के विरोध का आधार क्या है

महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय की ओर से बाल विवाह निषेध (संशोधन) विधेयक-2021 लोकसभा यानी निचले सदन में पेश किया गया। महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने यह विधेयक पेश किया। उन्होंने इस विेधेयक को लड़कियों, महिलाओं के सशक्तीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल करार दिया।

इसे पेश किए जाने का कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, द्रमुक, एआईएमआई, शिवसेना, बीजद, आरएसी आदि ने विरोध किया जताया। इस पर महिला एवं बाल विकास मंत्री ने आपत्ति जताई।

उन्होंने कहा कि जो लोग सदन में उनकी सीट के आगे हंगामा, विरोध कर रहे हैं वह एक प्रकार से महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित किए जाने का प्रयास है। उधर, इस विधेयक का विरोध कर रही पार्टियों के विरोध के पीछे कुछ अपने कारण हैं, जो निम्नवत हैं-

  • इसे पर्सनल ला पर हमला बताया गया।
  • विरोधियों का कहना है कि यदि 18 साल की आयु में कोई मतदान के योग्य है तो विवाह योग्य क्यों नहीं।
  • पाक्सो एक्ट के तहत 18 साल की उम्र शारीरिक संबंध के लिए सहमति की उम्र है तो शादी की उम्र बढ़ाना उचित कैसे है।
  • विधेयक को लाने से विपक्षी दलों से रायशुमारी की जानी चाहिए थी, जो नहीं की गई।

टास्क फोर्स की ओर से विवाह की उम्र समान किए जाने की सिफारिश की गई थी

आज से दो वर्ष पूर्व सन् 2020 में सांसद जया जेटली की अध्यक्षता में एक टास्क फोर्स गठित की गई थी। महिलाओं की स्थिति के साथ ही मातृ एवं शिशु मृत्यु दर कम करने के लिए इस टास्क फोर्स ने अपनी सिफारिशें दी थीं।

इन्हीं में कहा गया था कि मातृ मृत्यु दर कम करने के लिए एवं पोषण स्तर में सुधार के मुद्दे की जांच करने के लिए महिलाओं एवं पुरूषों की शादी की एक समान उम्र आवश्यक है।

इसके अतिरिक्त सुप्रीम कोर्ट ने भी साल 2021 के प्रारंभ में महिलाओं एवं पुरूषों के लिए शादी की एक समान आयु वाली याचिका को स्वीकार कर लिया था। इसके पश्चात केंद्र की ओर से महिलाओं एवं पुरूषों दोनों की विवाह के लिए न्यूतनम आयु 21 वर्ष किए जाने संबंधी विधेयक लाया गया।

भारत में बाल विवाह की स्थिति क्या है?

भारत में बाल विवाह की स्थिति पर बात की जाए तो कई राज्यों में यह समस्या अभी तक बनी हुई है। यदि 2011 की जनगणना पर भरोसा किया जाए तो बाल विवाह के मामले पश्चिम बंगाल राज्य सबसे आगे है। बाल विवाह के संबंध में इस राज्य का औसत 7 8 था, जो राष्ट्रीय औसत 3 7 की अपेक्षा दोगुने से भी अधिक था।

एक मोटे-मोटे अनुमान के अनुसार हमारे देश में हर वर्ष करीब 15 लाख लड़कियों का विवाह 18 वर्ष से कम आयु में हो जाता है। वहीं 15 से 19 वर्ष की लड़कियों के विवाह के आंकड़े की बात करें तो इस उम्र की करीब 16 फीसदी लड़कियों का विवाह हो चुका है। इस समस्या की जड़ गरीबी है।

यह आप भी जानते होंगे कि हमारे देश में लड़की के विवाह में दान दहेज का बड़ा प्रचलन है। दहेज लेने एवं देने दोनों को अपराध घोषित किए जाने के बावजूद इस समस्या का जड़ से नाश नहीं हुआ है।

अलबत्ता, यह कम जरूर हुई है। ऐसे में गरीब लोग अपनी बेटी की शादी कर जल्द से जल्द किसी भी प्रकार उसे उसके घर विदा करने में भी भलाई समझते हैं।

यह आश्चर्य में जरूर डाल सकता है कि कोरोना महामारी के दौरान बाल विवाह के ट्रेंड में तेजी आई है। बहुत से लोगों को जब यह डर हुआ कि उनके साथ भविष्य में जाने क्या हो, तो उन्होंने अपनी जिम्मेदारियां निबटाने की शुरूआत कर दी। बहुत सारे लोगों ने अपने बच्चों की विवाह योग्य आयु से पहले ही उनकी शादी कर दी।

शारदा एक्ट क्या है?

बाल विवाह निरोधक अधिनियम-1929 को ही शारदा एक्ट पुकारा जाता है।

बाल विवाह निरोधक अधिनियम को शारदा एक्ट क्यों पुकारा गया?

प्रवर्तक का नाम हरविलास शारदा होने की वजह से इस अधिनियम को शारदा अधिनियम पुकारा गया।

बाल विवाह निरोधक अधिनियम-1929 में लड़के-लड़कियों की शादी की उम्र क्या थी?

बाल विवाह निरोधक अधिनियम-1929 में लड़के-लड़कियों की शादी की उम्र क्रमशः 18 व 14 वर्ष थी।

बाल विवाह निरोधक अधिनियम-1929 में संशोधन कब किया गया?

बाल विवाह निरोधक अधिनियम-1929 में संशोधन सन 1978 में किया गया।

1978 में आए अधिनियम में लड़के लड़कियों की उम्र कितनी निर्धारित की गई?

1978 में आए अधिनियम में लड़के लड़कियों की उम्र क्रमशः 21 व 18 वर्ष निर्धारित की गई।

वर्तमान में भारत में बाल विवाह को लेकर कौन सा अधिनियम लागू है?

वर्तमान में भारत में बाल विवाह को लेकर बाल विवाह (निषेध) अधिनियम-2006 लागू है।

यदि कोई बाल विवाह को बढ़ावा देता है अथवा इसमें शामिल होता है तो क्या वह सजा का हकदार होगा?

जी हां, बाल विवाह को बढ़ावा देने अथवा इसमें शामिल होने की स्थिति में कोई भी व्यक्ति सजा का हकदार होगा। सजा कितनी होगी, इस संबंध में हमने ऊपर पोस्ट में बताया है।

अब केंद्र सरकार बाल विवाह को लेकर कौन सा विधेयक लाई है?

अब केंद्र सरकार बाल विवाह को लेकर बाल विवाह (निषेध) संशोधन विधेयक-2021 लाई है।

बाल विवाह (निषेध) संशोधन विधेयक-2021 का सबसे खास प्रावधान क्या है?

बाल विवाह (निषेध) संशोधन विधेयक का सबसे खास प्रावधान यह है कि इसमें लड़के एवं लड़कियों की विवाह की न्यूनतम आयु समान 21 वर्ष लागू किए जाने की सिफारिश की गई है।

बाल विवाह निषेध (संशोधन) विधेयक-2021 लोकसभा में कब पेश किया गया?

यह विधेयक लोकसभा में 21 दिसंबर, 2021 को पेश किया गया। इसे महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने सदन के पटल पर रखा।

इस पोस्ट के माध्यम से हमने बाल विवाह निषेध (संशोधन) विधेयक पर प्रकाश डाला। यह विधेयक बाल विवाह जैसी कुरीति को पूर्ण रूप से दूर करने में सहायक होगा, ऐसा माना जा सकता है। यदि आपको यह पोस्ट जागरूकता भरी लगी हो तो इसे अधिक से अधिक शेयर करना न भूलें। धन्यवाद।

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प्रवेश कुमारी

मास मीडिया क्षेत्र में अपनी 15+ लंबी यात्रा में प्रवेश कुमारी कई प्रकाशनों से जुड़ी हैं। उनके पास जनसंचार और पत्रकारिता में मास्टर डिग्री है। वह गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर से वाणिज्य में मास्टर भी हैं। वह वाणिज्य, व्यापार, कर, वित्त और शैक्षिक मुद्दों और अपडेट पर लिखना पसंद करती हैं। अब तक उनके नाम से 6 हजार से अधिक लेख प्रकाशित हो चुके हैं।

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